नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
हे साहूकार! मेरे पास कुछ नहीं है, बस यह है कि दो हाथ जोड़े खड़ा हूँ
वे आये और अपने कोलाहलपूर्ण आगमन से मुझे घेरकर तुझे मेरी दृष्टि से छिपा लिया।
मैंने सोचा–मैं अपना उपहार तुझे सबके पश्चात् और अन्त ही में अर्पित करूँ।
अब जब कि दिवस पीला पड़ गया है, उन्होंने मुझसे अपना ऋण लेकर मुझे अकेला छोड़ दिया है।
मैं देख रहा हूँ कि तू मेरे द्वार पर भी धन्ना दिये खड़ा है।
–किन्तु मैंने तो स्वयं ही जान लिया कि तुझे देने के लिये मेरे पास अब कोई भेंट नहीं है, बस जो कुछ है वह यह है कि तेरे सम्मुख मैं हाथ जोड़े विनम्र खड़ा हूँ।
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