नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मेरे पास कुछ भी नहीं सही, पर फिर भी मैं तुम्हारा स्वागत कर सकता हूँ
इस पतझड़ के प्रभात में मेरे अतिथि मेरे घर आये हैं।
रे! मेरे हृदय! अपना एक स्वागत गीत गाकर अपने घर आये अतिथियों का स्वागत कर।
रे हृदय! तू एक ऐसा गीत बना जिसमें सूर्य-ज्योति का नीलवर्ण आभासित हो, एक ऐसा गीत बना जिसमें ओस-बिन्दु से सींचित पवन की शीलता हो, एक ऐसा गीत बना जो प्रफुल्लित हृदय जैसे खेतों के स्वर्णिम वैभव से सुवासित हो, और देख!–हाँ, तू एक ऐसा गीत बनाना जिसमें सागर के कलित कोलाहल की हँसी निहित हो।
–अथवा–यदि तू ऐसा न कर सके तो देख! शब्दहीन होकर अपने अतिथि के सन्मुख केवल एक क्षण के लिए खड़ा हो जाना और उसके मुख की ओर त्रसित नेत्रों से देखने लगना।
–तत्पश्चात् अपने घर को छोड़कर तू भी उसके साथ किसी शान्त स्थान की ओर प्रस्थान कर जाना।
* * *
|