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ई-पुस्तकें >> मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामेविवेक सिंह
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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे
15. समझदार गधा
मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।
ऐसे समझदार आदमी ने अपनी सवारी को चुना था, एक गधा। वह अपने गधे को प्यार भी खूब करता था और गधा भी इतना समझदार था कि मुल्ला के हर इशारे को भाँप लेता था। सभी लोग उस गधे की प्रशंसा के पुल बाँधते रहते थे।
एक शहर के नवाब ने गधे की इतनी तारीफ सुनी तो मुल्ला को (गधे के साथ) अपने दरबार में बुलाया। मुल्ला खुशी-खुशी दरबार में पहुँचा और बड़े अदब के साथ नवाब की कोर्निश (प्रणाम) की।
नवाब ने मुल्ला नसीरुद्दीन से कहा- 'मुल्ला साहब! आप एक जहीन (बुद्धिमान) इन्सान हैं, जाहिर है आपकी सवारी के काम आने वाला गधा भी आपसे कम जहीन न होगा।'
मुल्ला ने नवाब के व्यंग्य को खूब समझते हुए भी सहज भाव से कहा - 'बेशक हुजूर, आप बजा फरमाते हैं। आपका कथन सत्य द्वै।' मुल्ला के इस उत्तर को सुनकर नवाब ने हँसी का जोरदार ठहाका लगाया। दरबारियों ने भी उसकी हँसी में साथ दिया।
हँसी थमी तो नवाब बोला- 'हम इस गधे को खरीदना चाहते हैं, इसकी कीमत बताओ, क्या लोगे?'
मुल्ला ने कहा- 'हुजूर वह मिसाल झूठी नहीं है कि एक जहीन ही दूसरे जहीन की इज्जत करता है, आपके मन में यह गधा समा गया है, तो आप ले लें। जो भी कीमत आप आँकेंगे, मुझे मंजूर होगी।'
नवाब ने अपने चहेते एक दरबारी को इशारा किया कि गधे को अपने हाथ में लेकर उसकी कीमत आँकें।
दरबारी ने ज्योंही गधे को हाथ लगाया त्योंही मुल्ला ने गधे को इशारा किया, गधे ने अपने मालिक का इशारा समझ कर दरबारी की छाती पर जोरदार दुलत्ती जमा दी।
गधे की इस हरकत पर नवाब झल्लाया-'यह तो बेहूदा गधा है, इसे सम्भालो मुल्ला।
इस बार मुल्ला मुस्कराकर बोला-'हुजूर, गधा यह समझ गया है कि अब वह अपने मालिक से जुदा (अलग) हो रहा है, तभी उसने जुदा करने वाले को लात जमाई है।
नवाब ने लम्बी दाढी वाली गरदन हिलाते हुए कहा-'हूँ..... मुल्ला ने कहा-' फिर भी अगर आप दो माह के बाद इस गधे की खरीद करें तो ज्यादा अच्छा होगा। इस दौरान मैं उसे राजा, नवाबों के दरबार के तौर-तरीके बखूबी समझा दूँगा।
आश्चर्य से चौंककर नवाब बोला-'क्या वाकई दो महीने में इतना समझदार हो जायेगा यह गधा?
'इस पर मेहनत करनी होगी हुजूर। मैं अपने दीगर (अन्य) सभी कामों को छोड़कर अपना सारा वक्त इस गधे की तालीम (शिक्षा) देने पर खर्च करूँगा। मेरी हुजूर से दर्खास्त (प्रार्थना) है कि मुझे सिर्फ एक दीनार (अशर्फी) रोजाना के हिसाब से साठ दीनारें शाही खजाने से दिला दी जायें।
नवाब ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी तो खजांची ने फौरन साठ दीनार मुल्ला को दे दिए। मुल्ला प्रसन्नतापूर्वक अपने घर लौट गया। ठीक दो महीने के बाद मुल्ला ने अपना गधा किसी को बेच दिया और रूँआसा होकर नवाब के दरबार में मुँह-लटकाए जा पहुँचा।
मुल्ला को गमगीन (शोक मग्न) देखकर नवाब ने पूछा- 'कहो मुल्ला साहब! खैरियत तो है? गधा कहाँ है?'
'कुछ न पूछें मालिक! मुझे सख्त अफसोस है कि...'
'क्यों क्या हुआ?' नवाब बेचैन हो उठा।
'हुजूर मैंने गधे को मन लगाकर पढ़ाया, वह भी मन लगाकर पढ़ा और पढ़ जाने पर वह यह कहकर भाग गया कि अब मैं पहले जैसा गधा नहीं रहा हूँ। इसलिए आदमी जैसे, बेमुरौबत जानवर के पास नहीं रह सकता।'
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