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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

16. हाजिर दिमागी


मुल्ला नसीरूद्दीन तातारियों के बड़े सख्त दुश्मन थे। हर महफिल और हर जगह उनको भला-बुरा कहा करते थे। उन दिनों तातारियों को हर जगह विजय प्राप्त हो रही थी। सारे पश्चिमी एशिया पर वे छाते चले जा रहे थे।

एक दिन मुल्ला जुम्मे (शुक्रवार) की नमाज से पहले मस्जिद में भाषण दे रहे थे। उसमें उन्होंने तातारियों की ज्यादतियों और अत्याचारों का जिक्र किया और तैमूरलंग को भी बुरा-भला कहा। तैमूर को पहले ही खबर मिल चुकी थी कि मुल्ला नसीरूद्दीन हमारे दुश्मन हैं और हर जगह हमारा विरोध किया करते हैं। अत: उस शुक्रवार को वह स्वयं फकीर का भेष बदलकर मस्जिद में आया हुआ था, ताकि अपने कानों से मुल्ला की बातें सुने। तैमूर के साथ उसके बहुत से सिपाही भी सादे कपड़े पहने मस्जिद में मौजूद थे।

मुल्ला ने अपना भाषण खत्म करके दुआ माँगी- 'ऐ खुदा, इन तातारियों का नाश कर दे!'

तैमूरलंग ने यह दुआ सुनी, तो आगे बढ़ा और मुल्ला से कहा- 'खुदा तुम्हारी दुआ कभी कबूल नहीं करेगा।'

मुल्ला ने कहा- 'आखिर क्यों? जब वह सबकी सुनता है, तो हमारी क्यों न सुनेगा?’

तैमूरलंग ने जवाब दिया- 'तुम्हें अपने किए की सजा मिल रही है। तुम जानते हो कि हर बात की एक वजह होती है। कोई काम यों तो हो नहीं जाता। तुमने निश्चय ही कोई ऐसे काम किये होंगे, जिनकी सजा आज मिल रही है और जब वर्तमान मौजूदा बादशाह तुम पर सजा के तौर पर डाल दिये गये हैं, तो उनका बदला कैसा?'

अब तो मुल्ला सिटपिटाए। उन्होंने देखा कि यह बातें एक फकीर कह रहा है। निश्चय ही उनमें कुछ न कुछ सत्य अवश्य होगा।

उन्होंने और खोज लगाने की नीयत से तैमूरलंग से पूछा- 'आप कौन साहब हैं और क्या नाम है?'

तैमूरलंग ने जवाब दिया- 'मैं एक फकीर आदमी हूँ। मेरा नाम तैमूर है।‘

तैमूर का नाम सुनते ही मुल्ला के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने मुश्किल से अपने होश-हवाश पर काबू पाते हुए नमाजियों पर नजर दौड़ाई। कुछ लोग इधर-उधर खड़े थे। वे हथियारों से लैस थे। मुल्ला समझ गये कि यह तैमूर के सिपाही हैं।

उन्होंने और पुष्टि के लिए पूछा- 'क्या आपका नाम लंग पर तो खत्म नहीं होता?'

तैमूर ने जवाब दिया- 'हाँ!’

अब मुल्ला फिर नमाजियों से संबोधित हुए और बोले- 'भाइयों! अभी हमने सामूहिक रूप से दुआ माँगी थी। अब सबके सब इकट्ठे होकर मरने के लिए तैयार हो जाओ। हम लोगों का आखिरी वक्त करीब आ पहुँचा है।'

तैमूर ने यह बातें सुनीं तो बड़ा आनंदित हुआ। उसने मुल्ला को न केवल माफ कर दिया, बल्कि अपने दरबारियों में भी शामिल कर लिया।

 

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