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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

8. तीर किसने चलाया ?


एक बार मुल्ला नसीरूद्दीन के गाँव में जोरदार मेला लगा। खूब खेल-तमाशे और आमोद-प्रमोद का प्रबन्ध किया गया। मुल्ला के शागिर्दों का मेला देखने का मन हुआ। अत: उनमें से एक शार्गिद, जो मुल्ला के बहुत निकट था, मुल्ला की सेवा में हाजिर हुआ और मेले में जाने की अनुमति चाही। मुल्ला सहर्ष राजी हो गये और साथ ही यह भी कहा कि मैं स्वयं भी तुम लोगों के साथ चलूँगा, ताकि वहाँ अच्छी तरह तुम्हारा व्यावहारिक प्रशिक्षण कर सकूँ।'

मुल्ला अपने शार्गिर्दों सहित मेले की ओर चल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्हें सबसे पहले एक ऐसी दुकान मिली, जहाँ तीर का निशाना लगाने पर पुरस्कार मिलता था। दुकानदार ने अपनी दुकान पर एक बैल की तस्वीर लगा रखी थी और कुछ दूरी पर एक तीर-कमान रख दिया था। शर्त यह थी कि जो भी बैल की आँख पर निशाना लगायेगा, उसको कीमती पुरस्कार दिया जायेगा। मुल्ला जब अपने शागिर्दों को लेकर दुकान पर पहुँचे, तो कुछ अन्य लोग भी तमाशा देखने के लिए वहाँ इकट्ठे हो गये। थोड़ी देर में यह बात सारे मेले में फैल गई कि मुल्ला नसीरूद्दीन बैल की आँख पर निशाना लगा रहे हैं। अब क्या था। लोग भाग-भाग कर वहाँ जमा होने लगे।

मुल्ला ने बहुत शान के साथ तीर-कमान उठाया और अपने शागिर्दों से बोले- 'जरा गौर से देखो, मैं किस प्रकार तीर चलाता हूँ।‘ यह कहकर उन्होंने काफी देर तक निशाना साधा। फिर तीर छोड़ दिया। तीर निशाने से बहुत दूर जा गिरा। जनसमूह में एक जोरदार कहकहा लगा। मुल्ला के शागिर्द बेचारे परेशान हो गये। मुल्ला ने जो यह दशा देखी, तो मुड़कर कहा- 'खामोश! खामोश!! इसमें हँसने की बात नहीं। मैं यह बता रहा था कि एक सिपाही गलत निशाना लगा भी सकता है। उसकी जरा सी गलती से देश लड़ाईयाँ हार जाते हैं। इसलिए ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। अभी जब मैंने तीर चलाया, तो यह सोच लिया था कि मैं एक सैनिक सिपाही हूँ और शत्रु पर निशाना लगा रहा हूँ। सो, निशाना चूक गया।'

इसके बाद मुल्ला ने दूसरा तीर उठाया और पूरी सावधानी के साथ उसे भी छोड़ा। वह भी निशाने पर तो न लगा लेकिन निशाने के काफी नजदीक था। लोग बिल्कुल चुप खड़े रहे और कहीं से भी किसी के हँसने या बात करने की आवाज न आई।

मुल्ला नसीरूद्दीन ने फिर सफाई पेश करते हुए कहा, 'आप लोगों ने देखा! जब आदमी एक बार किसी काम में असफल हो जाये, तो उसके हाथ-पाँव फूल जाते हैं और वह दूसरी बार भी असफल होता है।‘

मुल्ला की बातें सुन-सुन कर लोग मुस्करा रहे थे। दुकानदार भी आनंदित हो रहा था।

इतने में मुल्ला ने तीसरा तीर काया और बड़ी लापरवाही के साथ कमान खींचकर तीर छोड़ दिया। संयोग की बात, अबकी बार तीर ठीक निशाने पर लगा। मुल्ला ने गर्व से अपना सीना ऊँचा किया और किसी से कोई बात कहे बिना एक नजर पुरस्कारों पर दौड़ाई। जो पुरस्कार सबसे अधिक पसन्द आया, वह दुकानदार से पूछे बिना उठा लिया और दुकान से बाहर निकल आये। इस पर बड़ा शोर मच गया।

मुल्ला ने यह हंगामा देखा तो मुड़े और सबको हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा। जब सब चुप हो गये, तो उन्होंने पूछा- 'अब एक आदमी बाहर आये और मुझे बताये कि तुम लोग आखिर कहना क्या चाहते हो? '

थोड़ी देर तक तो किसी ने कोई जवाब न दिया। एकदम खामोशी छायी रही। फिर एक देहाती बाहर आया। उसने मुल्ला की ओर मुखातिब होकर कहा, 'वास्तव में हम लोग यह मालूम करना चाहते थे कि आखिरी बार तीर क्या सचमुच आपने ही चलाया था?'

'ओह! इतनी सी बात! क्या आप लोग देख नहीं रहे थे कि मैंने तीर चलाया था। भई, कमाल कर दिया आप लोगों ने .....!’ यह कहकर मुल्ला वहाँ से चलते बने।

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