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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

रास्ते में उन्हें बड़ी सख्त प्यास लगी। सोचा, क्यों न जादू के थैले से पानी माँगा जाये। खुशी-खुशी वो खच्चर से उतरे। थैला उठाया और बोले-'ऐ जादू के थैले! एक गिलास ठंडा पानी।' यह कहकर थैले में हाथ डाला, पर वहाँ न पानी था, न दाना। कुछ देर तक सोचते रहे कि पानी क्यों नहीं निकला? फिर यह सोचकर चुप हो गये कि जादूगर ने तो खरगोश, गेंद और पौधा निकाला था। मैं अकारण पानी माँग रहा हूँ।

थोड़ी देर के बाद फिर सोचा कि चलो, तजुर्बे के तौर पर हम भी खरगोश निकालें। अत: अबकी बार खरगोश माँगा और थैले में हाथ डाला। वहाँ खरगोश होता तो हाथ आता। अब तो वे बहुत परेशान हुए, पर इसके बावजूद उन्होंने न तो जादू के थैले पर शक किया और न मदारी पर। वे सोचने लगे कि शायद मैंने थैले को परेशान कर डाला है। मदारी ने मना किया था कि जादू का थैला बड़ा कोमल स्वभाव का है। उसे तंग न करना। मैंने व्यर्थ में उसे परेशान किया और उस पर तजुर्बे करता रहा। अत: अब जरा भी तंग न करूँगा।

यह निश्चय करके उन्होंने जादू का थैला खच्चर पर डाला और शहर की ओर चल दिये। वो चाहते थे कि किसी प्रकार जल्दी से जल्दी अपने शहर पहुँच जाऊँ और शहर वालों को तमाशा दिखाऊँ। थोड़ी दूर गये होंगे कि खच्चर बिदकने लगा। वो तेज-तेज चलने के कारण थक चुका था। मुल्ला यह समझे कि शायद एक थैला बढ़ जाने के कारण खच्चर परेशान हो रहा है। वह तो केवल एक थैले और मेरे वजन का आदी है। आज एक थैला अधिक हो गया है। इस ख्याल के आते ही उन्होंने खच्चर को एक गाँव की ओर मोड़ दिया। वहाँ पहुँच कर एक अन्य खच्चर खरीद डाला।

अब उन्होंने जादू का थैला उस नए खच्चर पर डाल दिया और उसको अपने खच्चर के साथ लेकर चले।

रास्ते में लोगों ने देखा कि मुल्ला एक खच्चर पर सवार है। दूसरा खच्चर साथ-साथ चल रहा है, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। अत: एक राहगीर ने आगे बढ़कर पूछ ही लिया- 'मुल्ला जी! यह दो खच्चर किसलिए ले जा रहे हो?'

मुल्ला ने जवाब दिया- 'आप लोग तो निरे मूर्ख हैं। दो खच्चर किधर हैं। मेरे पास तो एक ही खच्चर है। उस पर मैं स्वयं सवार हूँ। दूसरा जादू का थैला है जिसे खच्चर पर रख कर लिये जा रहा हूँ।'

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