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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

7. जादू का थैला


एक बार की बात है कि मुल्ला नसीरूद्दीन बाजार से गुजर रहे थे। उनके पास बहुत से रुपये थे। उन्हें वे हवा में उछालते हुए चल रहे थे। संयोग से रास्ते में एक मदारी बैठा हुआ था। मदारी ने बहुत से रुपये मुल्ला के हाथ में देखे, तो उसके मुँह में पानी भर आया। उसने सोचा, कि किसी न किसी प्रकार यह रुपये हथिया लिये जायें। अत: यह ख्याल आते ही उसने मुल्ला को आवाज दी। मुल्ला का दुर्भाग्य कि वह उसके पास पहुँच गये और बड़ी शान के साथ बोले- 'क्या बात है उस्ताद?'

मदारी ने जो मुल्ला को अच्छे मूड में देखा तो बोला- 'तुम तो बड़े समझदार आदमी लगते हो?'

मुल्ला ने गर्वीले स्वर में कहा- 'इसमें क्या शक है।'

मदारी बोला- 'मौलाना साहब! मेरे पास जादू का एक थैला है। अगर आप पसंद करें, तो उसे खरीद लें।'

मुल्ला ने जवाब दिया- 'भई, ऐसे कैसे खरीद लूँ। मुझे कुछ उसके फायदे नुकसान तो समझाओ। तब मैं सोचूँगा कि उसे लेना चाहिये या नहीं?'

मदारी ने कहा- 'अच्छा, तो लीजिए, देखिए।'

यह कहकर मदारी ने अपना हाथ जादू के थैले में डाला। उसमें से एक खरगोश बाहर निकाला। उसके बाद हाथ डाला, तो एक गेंद निकाली। इसी प्रकार तीसरी बार हाथ डालकर एक पौधा निकाला, जो बाकायदा गमले में लगा हुआ था।

मुल्ला ने यह तमाशा देखा तो बड़े खुश हुए। उनके दिल में यह इच्छा करवटें लेने लगी कि यह थैला जरूर खरीदा जाये - और अपने शहर वालों को तमाशा दिखाया जा सके।

मदारी ने मुल्ला पर और रौब डालने के लिए कहा- 'मौलाना साहब! एक बात का ख्याल रखना कि यह थैले बड़े कोमल स्वभाव के होते हैं। इन्हें परेशान न करना, नहीं तो इनका जादू खत्म हो जायेगा। और हाँ, दूसरी बात यह है कि किसी अन्य आदमी से इस जादुई थैले का हाल मत कहना।'

मुल्ला ने जवाब दिया- 'अजी, तौबा करो! मैं कोई बेवकूफ हूँ। किसी को हवा भी न लगने दूँगा।'

यह कहकर उन्होंने थैले की कीमत मदारी को दे दी और थैला अपने खच्चर की पीठ पर लादकर अपनी राह ली।

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