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मुल्ला नसीरुद्दीन के चुटकुले

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9836
आईएसबीएन :9781613012741

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मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।

21

भादों की अमावस की घनघोर अँधेरी रात में मुल्ला अपने एक दोस्त के घर जुआ खेल रहा था। मुल्ला की करारी हार हुई थी इसलिए खीझकर दोस्तों से झगड़ा कर बैठा।

गुस्से में गाली बकता हुआ दरवाजे की ओर बढ़ते हुआ वह बोला-'भई हद हो गई शराफत की! मेरा क्या है, मैं तो अकेला हूँ, इतना लम्बा जहान पड़ा है, कहीं भी चला जाऊँगा। कहीं जाने की भी क्या जरूरत है, किसी कुएं में छलाँग लगा दूँगा या किसी नदी में ही डूब मरूँगा। मगर आज के बाद तुम्हें मुँह नहीं दिखाऊँगा। तुम एक अच्छे दोस्त के लिए तरस जाओगे।'

दरवाजा खोलकर देखा तो बाहर गहन अन्धकार दिखाई दिया। अन्दर वापस लौटता हुआ मुल्ला बोला, 'यह समझ लो आज खुदा तुम पर मेहरबान है। बाहर भारी अंधेरा है, इसलिए मैं जा नहीं सकता, नहीं तो।'

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