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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
64
नींद टूटने के बाद
न जाने कैसे अचानक उसकी नींद टूट गयी। नाइट लैम्प की रोशनी में चमकती घड़ी की सुइयां तीन बजा रही थीं। उसे ऐसा लगा नींद पूरी हो गयी है। परन्तु रात के तीन बजे उठकर वह करे भी तो क्या करे...।
पास में सो रही बेटी को उसने कम्बल से ढक दिया, कितनी... मासूम... तभी उसे गर्भ में पल रहा जीव का ख्याल आया, क्या मालूम लड़का है या लड़की। पैंरों की चाल और खाने की रूचियों को देखकर सास कहती है। इस बार लड़का होगा। उसकी यह बात सुनकर घर में सबको खुशी तो होती है, परन्तु उसकी थ्योरी पर पक्का विश्वास नहीं होता।
जेठानी तो चाहती है भ्रूण की जांच करा लेनी चाहिए। सास तो लड़का चाहती ही है इसके लिए उन्होंने एक दिन मुझे किसी बाबा की दवा भी पिलाई और पीर बाबा की मन्नत भी माँगी थी। पारिवारिक संस्कारों के वशीभूत पति भी लड़का चाहते हैं। मैं... मैं लड़का तो चाहती हूं क्योंकि सारे परिवार की खुशियां लड़के में जुड़ी हैं... परन्तु लड़की भी हो जाए तो कुछ बुरा नहीं है। आजकल लड़की वाले अधिक खुश हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियों के अनेक लाभ व फायदे उसकी नजरों में घूम गए। इस विचार के साथ यकायक उसका हाथ उदर को सहलाने लगा और वह भविष्य की सुखद अनुभूतियों में खो गयी।
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