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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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अपने-अपने रिश्ते
विवाह के मंत्रों का उच्चारण हो रहा था। दुल्हा और दुल्हन दोनों विवाह सूत्र में बंधने के लिए पण्डित जी के सामने वेदी पर बैठे थे। एक सूत्र के बंधन में बंधना तो कोई नहीं चाहता था परन्तु उनके माता-पिता ने उन्हें एक मशीन के पुर्जे की भांति बांधकर बैठा रखा था।
मंगलाचरण करने के लिए पण्डित जी ने दुल्हे का गोत्र पूछा। दुल्हे का जवाब सुनते ही दुल्हन के परिवार के कान खड़े हो गए। अपनी औलाद से हटकर दोनों पक्षों की आंखे एक दूसरे के प्रति लाल होने लगी।
अपनी बात बनती देख वर-वधु दोनों भी खड़े हो गए।
‘मैं अपने गौत्र की लड़की के साथ विवाह नहीं कर सकता।’ वर ने अपना फैसला सुनाया।
‘मैं भी ऐसे दकियानुशी विचारों वाले लड़के के साथ शादी नहीं कर सकती।’ वधु ने भी अपना घूंघट खोल दिया।
जिस घर में शहनाई गूंज रही थी अचानक वहां खामोशी पसर गयी। परन्तु लड़का-लड़की दोनों मन ही मन खुश थे क्योंकि अब वे अपनी मनपसंद विजातीय घर में शादी रचा सकेंगे।
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