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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

57

सुनो कहानी


राजा ने अपने राज्य की सबसे सुंदर लड़की को अपनी रानी बनाकर महल में रख लिया। महल में सभी सुख सुविधाएं थी, परन्तु एक सख्त आदेश भी था कि महल में रहने वाला कोई भी व्यक्ति अपनी दर्द-ए-दाश्तां किसी को ब्यान न करे।

एक दिन रानी के पेट में बड़ा तेज दर्द उठा। वैदराज को बुलाया गया। रानी की नब्ज देखकर उसने कहा-’रानी साहिबा, कोई आपकी दर्द-ए-दाश्ता सुन ले तो तुरंत आपका दर्द ठीक हो जाए।’

‘वैद जी फिर तो आप ही मेरी दर्द-ए-दाश्तां सुन लीजिए।’ रानी ने अनुरोध किया।

‘नहीं रानी साहिबा मुझे अभी राजा के पास जाकर आपके बारे में बताना है।’ कहकर तुंरत वैद जी चले गए।

रानी ने अपनी दर्द-ए-दाश्ता सुनाने के लिए अपनी प्रिय बांदी को बुलाया परन्तु इसने भी इंकार कर दिया-’रानी जी मुझपर ऐसा जुल्म न करे, राजा जी को पता लग गया तो हमें जिंदा गड़वा देंगे।’

बागीचे में आकर रानी अपनी गुलामी के दाश्तां को कदम्ब के वृक्ष को सुनाने लगी परन्तु एक बार भी उसने होठ न खोले। वृक्ष पर बैठे तोते को अपनी दर्द भरी कहानी सुनाने लगी तो उसने भी कहानी पर अपने कान न लगाए। पूरे दिन रानी अपने पेट-दर्द से तड़पती रही।

प्रातः की सरद हवाओं के साथ राज्य की गलियों में समाचार फैलने लगा कि रात को उदर-पीड़ा के कारण रानी स्वर्ग सिधार गयी।

 

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