नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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सामण की कौथली
‘बहन कलावती राम राम’
‘राम राम भाई... तेरी सौ बार राम राम’
‘काल रमेश नै भेजूंगा सामण की कौथली...।’
‘भाई मेरी एक बात ध्यान से सुण ले। जमाने का हिसाब लगाकर ये पुराने रीवाज छोड़ दे... न तो आजकल बालकां न फुर्सत और ना बाहण-बेटियों न लालच... सारे ठाठ सै। भाई तेरी तो आन-जान की हिम्मत नहीं, मौका लगाकै मैं तेरे तै मिलण आ जाऊंगी...।’
‘बाहण बात तो तेरी स्याणी सै इसा सै बड़ा नै रीत बणा राखी सै... जिब तक निभ जा ठीक सै...।’
‘बोहत निभा ली भाई। चार बुआ और दो बाहण... एक छोरा तेरा किस किस की कौथली दे कै आवेगा। जिसकै धणा जरूरी हो चला जावेगा... बस...।’
‘अच्छा बाहण तेरी मरजी...।’
एक पुरानी परम्परा को बदलकर कलावती का मन संतोष से भर गया।
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