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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

52

माँ


रमाकान्त की बिमारी का समाचार मिलते ही अपनी गठरी बांधकर बेटे के पास आ गयी। बेटे के पास तो कोई जमा पूंजी थी ही नहीं इसलिए माँ ही हॉस्पीटल में रहकर सारा खर्च उठाने लगी। कंगाली में आटा गीला-माँ के आने का समाचार पाकर रमाकांत एक बार चिंतित हुआ था परन्तु माँ को सारा खर्च उठाते देख वह निश्चिंत हो गया था।

सबको आश्चर्य था माँ के पास इतना पैसा आया कहां से, शायद कर्जा लिया हो, या छुपा के रखा हो...।

हॉस्पीटल से छूटकर जैसे ही रमाकांत घर आया तो वह अपने आपको रोक न पाया और माँ से पूछ ही लिया-’माँ तूने तो अपनी सारी जमा पूंजी देकर मुझे शहर में बसा दिया था फिर मेरे इलाज के लिए इतना रूपया कहां से आया...?’

बेटे हर महीने जो रूपया मेरे खर्च और दवा-दारू के लिए भेजता था, मैं उसमें बचाकर जोड़ती रही...

‘हारी बीमारी न जाने कब...’

‘परन्तु माँ...।’

‘रमाकान्त अपना खर्च तो मैं सूतकात कर चला लेती थी। दवाइयां भी आधी ही खरीदती थी... मैं तो पका हुआ फल हूं एक न एक दिन तो शाख से टूटना ही है परन्तु तुम्हारे सामने तो सारा जीवन पड़ा है...’ बताते हुए माँ ने रमाकान्त के माथे को सहला दिया।

रमाकान्त को लगा, किसी फरिश्ते ने उसे अपने आंचल में समेट लिया है।

 

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