नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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हिम्मत
रेलवे स्टेशन से निकलते मूंछोंवाले व्यक्ति ने उसे पकड़ लिया- ‘ऐ लंगड़ी बुढिया, के सै तेरी इस पोटली में... चल नीचे उतार।’
‘बेटा थोड़ा सा खाण का सामान सै... और कुछ ना सै, बुढि़या ने दोनों हाथ जोड़ दिए।
‘तू यूं नहीं मानेगी... तेरी पर्ची कटवाणी पड़ेगी... नहीं तो निकाल दे मेरा हिस्सा चुपचाप...।’
‘हिस्सा...क्यां का हिस्सा रे...’
‘जो कुछ इसमें सै।’ डंडे से पोटली टटोलते हुए बोला।
लंगड़ी बुढि़या ने पोटली उतारकर खोल दी और बोली-’मनै के बेरा था, तेरा भी पेट पटरया सै... ले खा ले...।’
‘के सै यो कबाड़ा...।’
‘भीख में माँगी पांच दिना की रोटियां नै बेचण जा थी, लेले तू भी अपना हिस्सा, मनैं ना बेरा था सरकार नै भी जगह-जगह अपने मंगते छोड़ राखे सै।’
मूंछों वाला अब इधर से नजर चुराकर दूसरे यात्रियों को देखने लगा।
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