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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

41

शिक्षा


नरेन्द्र उमा से शादी करने की जिद किए था। विजातीय शादी, इस बात को लेकर सारे परिवार में हड़कम्प मचा हुआ था। माँ बेटे को समझाकर हार गयी। कहीं कहा सुनी न हो जाए, इस डर से बाप-बेटे आमने-सामने नहीं आना चाहते थे।

नरेन्द्र के गुरुजी ही इसको समझा सकते हैं। माँ को एक उपाय सूझा। सभी को इस बात में बल नजर आया।

एक प्रकार से नरेन्द्र को गुरुजी ने ही पाला था। पिता अपने व्यवसाय में तथा माता कमाए हुए धन को व्यय करने में व्यस्त और मस्त। पहले नरेन्द्र एक घंटा गुरुजी के पास ट्यूशन जाता था, फिर दो-दो घंटे जाने लगा और बाद में तो वह लगभग गुरुजी के पास रहने लगा था। माता-पिता उसे गुरुजी के हाथों में सौंपकर एकदम निश्चिंत थे। ‘शर्माजी, नरेन्द्र आपकी बात कभी नहीं टालता, इसलिए आप ही उसको कुछ समझाइए।’ हताश पिताजी बहुत विनम्र हो गए थे।

‘परन्तु आप ये तो बताइए, उमा में कमी क्या है? पढ़ी-लिखी है, सुन्दर है, कुलीन है...।’ गुरुजी समझाते हुए से कहने लगे।

‘मास्टरजी, वो हमारी जाति की नहीं है, मेरी तो नाक ही कट जाएगी बिरादरी में।’ उठते हुए वे उत्तेजित भी हो गए थे, ’मैंने ही आपके पास छोड़कर गलती की...।’

‘छोड़ो जी, ये क्या समझाएंगे, इन्होंनें तो खुद अपनी बेटी दूसरी जाति में ब्याह दी थी।’ पत्नी ने तो जाते-जाते साफ ही कह दिया।

गुरुजी अपनी शिक्षा का प्रभाव देख मुस्काते रहे।

 

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