नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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अंधी दौड़
ऐश्वर्य न उसने कभी चाहा और शायद मिलता भी नहीं, पर दाल-रोटी की लड़ाई भी उसकी क्लर्की से न लड़ी जा रही थी तो एक लाला की दुकान पर पार्ट टाइम जाना पड़ता था।
पांच बजे दफ्रतर से भागकर उसे साढ़े पांच बजे हाजिरी देनी पड़ती। लेट हो जाता तो गया काम से।
हाथ में वजनदार थैला लटकाए खारी बावली से गुजर रहा था तो पटड़ी वालों पर बहुत क्रोध आया था। उसे लग रहा था कंधे टकरा-टकरा कर लहुलहूहान हो गए हैं। वह सोचता, हर व्यक्ति उसे रोकने के लिए साजिश किए खड़ा है...
बस उसे इतना ध्यान है मुड़ते हुए किसी वृद्धा से टकराया था-वह गिर पड़ी थी। लेकिन पीछे मुड़कर देखने का अर्थ था पार्ट टाइम की हानि-वह अधिक गतिशील हो गया था।
रात हारे-थके कंधे पर थैला लटकाए घर में प्रवेश किया तो माँ की कर्राहट सुनकर रूक गया।
‘क्या बात है माँ‘ थैला उतारकर पूछा।
‘कूल्हे की हड्डी टूट गई बेटा। राह चलते कोई बदमाश धकेल गया। कर्राहट कोसने लगी।
‘ओह‘, जेब में पड़ा ओवर टाइम उसे बहुत बोझिल लगने लगा।
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