नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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हत्यारी ममता
‘डॉक्टर रंजना मुझे एबोर्शन करवाना है...’ अपनी सीनियर के सामने पड़ी कुर्सी में गिर सी पड़ी डॉक्टर सुधा।
‘कैसी बात कर रही हो सुधा, आप तो जानती हैं कि भ्रूण हत्या पाप भी है और गैर कानूनी भी...’ सुधा कुछ नहीं बोल पा रही थी।
‘फिर भी बताओ किसका एबोर्शन करवाना है?’
‘मुझे अपना...’
डॉ. रंजना तो चौंक गई, ’मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा, शादी के तीन वर्ष बाद फस्ट डिलिवरी... आपको तो लगभग फाईव पल्स हो गए, खतरा भी है।’ डॉ. रंजना अपनी कुर्सी छोड़कर कंधें से सट कर खड़ी हो गई...
‘आखिर बात क्या है?’
‘मुझे एड्स है डॉक्टर मुझे माँ बनने का कोई अधिकार नहीं।’ पलकों में समाएं आंसू गालों से होते हुए आंचल में समा गए।
यह सुनकर डॉ. रंजना के भी पांव तले से जमीन निकल गई।
संतुलित खड़ा रहने के लिए उसने डॉ. सुधा के कंधे का सहारा लिया, ‘ये सब कैसे हुआ बहन?’
‘शायद एड्स विभाग में काम करते हुए। अब तुम्हीं बताओ एड्स के रोगी बच्चे को जन्म देकर मैं कैसे उसको तिल-तिलकर मरता हुआ देख पांऊगी और फिर मेरा भी भरोसा क्या है...’ कहते-कहते डॉक्टर निढ़ाल सी हो गई।
‘तू चिंता मत कर, मैं कुछ न कुछ जरूर करूंगी।’ झूठी दिलासा देते हुए डॉक्टर रंजना ने सुधा को बिस्तर पे लेटा दिया।
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