नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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कन्या पूजन
आज तो रामरती दाई की आंख सी खुलगी। खाना बनाकर, दुर्गा अष्टमी का पूजन करने के बाद वह भोज कराने के लिए सात कन्याओं को एकत्रित करने के लिए मोहल्ले में गयी। सभी घरों में घूमने के बाद वह केवल पांच कन्याएं ही एकत्रित कर पायी। सबको खाना खिलाने, दान दक्षिणा देने के बाद भी दो थालियां बच गयीं। नौ दिन पूजा करने के बाद भी उनका मन खुश न हुआ। भारी मन के साथ वह दोनों थालियां मंदिर में दे आयी।
देवरानी ने तो साफ कह दिया-’तुम कन्याओं को गर्भ में मरवाती हो ना यह उसी का परिणाम है।’
‘गजब हो गया बहन! पूरे मोहल्ले में सात कन्याएं जोड़ना भी मुश्किल हो गया। मनै ना बेरा था ये दिन भी देखने पड़ेंगे।’ रामरती दाई अभी भी दुःख और पश्चाताप से उबर नहीं पायी थी। ‘ये कान पकड़े, इब तो कदै इस पाप में ना पडूं...।’
‘तेरा भी कुछ ना बेरा कदै कन्याओं की पूजा करै और कदै कन्याओं की हत्या...।’
‘के करती बहन सास के साथ दायी के काम में पड़गी। जच्चा की, घरवालों की बात मानना तो मेरा पेशा है और कन्या पूजन करना मेरा संस्कार... पर इब तो कदै नाम भी ना लू बल्कि कोई बात भी करेगा तो उसने समझा दूंगी... औरत के बिना संसार क्यूंकर चलेगा...।’
‘या बात ठीक है... फिर तो कुछ पाप का बोझ भी हल्का हो जावेगा...।’
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