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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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निःशक्त जीत
जिला स्तर की कबड्डी प्रतियोगिता में कई स्कूलों की टीमें तो इसलिए भाग नहीं लेती थी क्योंकि उनको मालूम था गढ़ी गांव की टीम में जब तक कमला है कोई उससे जीत नहीं सकता। कमला के हाथ तो जैसे लोहे के बने थे, एक बार पकड़ लेते तो बस। एक दिन कमला को किसी की नजर लग गयी। माँ के साथ गंडासे में चारा काटते हुए उसके दांए हाथ का पंजा कट गया। आसपास के सभी स्कूलों में यह समाचार आग की भांति फैल गया।
इस वर्ष खेल प्रतियोगिताओं में कबड्डी की दुगनी टीमों ने भाग लिया। कमला एक हाथ से पकड़ रही थी परन्तु किसी खिलाड़ी में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसकी पकड़ से निकल सके।
कमला की टीम ही प्रथम आई। एक पत्रकार ने विकलांग कमला से पूछा- ‘आपने एक ही हाथ से दो हाथ वाली लड़कियों को कैसे पराजित कर दिया?’
‘पत्रकार भाई, हार और जीत शरीर से नहीं हौसले से होती है। इसके अतिरिक्त मैंने पहले से दुगना परिश्रम किया तो भगवान ने मेरी टीम को विजयी कर दिया।’ कमला का चेहरा विजय की खुशी से दमक रहा था।
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