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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

21

सहयोग


डॉ. अंजना के क्वाटर में इतना काम नहीं था कि बिना नौकरानी काम न चले फिर भी एक महिला साथ में हो तो सुविधा रहती है। परन्तु अब तो अकेले ही रहना पड़ेगा क्योंकि राजो की डिलीवरी है वह तो छुट्टी पर जाएगी ही ...खैर देखा जाएगा...।

तभी राजो एक 14 वर्ष की अपंग लड़की का हाथ थामे अंदर आयी। ‘देखो डॉक्टरनी जी, ये लड़की आपका काम चला देगी।’

डॉ. अंजना को आश्चर्य हुआ-’अरे ये तो अपाहिज है, ये क्या काम करेगी? और छोटी भी है... बेकार में बाल कल्याण परिषद वाले आकर हंगामा कर देगें, ना बाबा ना...।’

‘डॉक्टर अम्मा मैं आपका सारा काम अच्छे से कर सकती हूं, मैं क्या अपने घर में काम नहीं करती जो बाल कल्याण परिषद वाले हंगामा करेगें वो क्या मुझे रोटी खिला देगें।’ उसके शब्दों में विश्वास भरा था।

उसका आत्मविश्वास देखकर डॉ. अंजना सोचने लगी-’तुम्हारा नाम क्या है?’

’कमली...! हां कमली।’

‘मुझे तुम्हारी बातें तो अच्छी लगीं। तुम मेरे हैसबैंड की लाइब्रेरी की डस्टिंग कर दिया करो बस, बाकी सब काम मैं संभाल लूगी।

लेकिन एक शर्त है-तुम्हें यहां आकर अपनी पढ़ाई चालू करनी होगी।’

‘जी डॉक्टर अम्मा, कहो तो आज से काम चालू कर लू?’

‘ठीक है राजो इसको काम समझा दे’।

‘थैंक यू, डॉक्टर अम्मा!’ पढ़ाई की बात सुनकर ये शब्द स्वतः ही

कमली के होठों पर आ गए।

 

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