नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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नाखूनों की जुबान
इतनी तंग गली में आसानी से तो एक ही व्यक्ति गुजर सकता था। कभी-कभार सामने से कोई आ भी जाता तो दोनों को धीरे से सटकर
गुजरना पड़ता था।
सुबह-सुबह सेठ निकले तो गली के बीच रुनिया आ गई। सेठ देखते ही बिगड़ गया, ’ऐ... कालू की... चल वापस चल... पहले मुझे निकल जाने दे।’
‘सेठ, जरा बराबर से होकर निकल जा।’
‘चल हट, मेरा धर्म-कर्म नष्ट करेगी क्या...?’
‘क्यों सेठ, उस रात झुमिया को गोदाम में लिए जा रहा था तब कहां गया था तेरा धर्म-कर्म...?’ फुफकारती हुई रूनिया आगे बढ़ती चली गई और बेचारा सेठ बड़बड़ाता हुआ पीछे हटता गया।
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