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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
17
दहेज के लिए दहेज
कॉलेज में ही उसने प्रण किया था इसलिए दो वर्ष से वह अपनी बहन के लिए बिना दहेज का दुल्हा खोज रहा था।
‘माँ, पड़ोसी सब टोकते और बहन का चेहरा भी मुरझाने लगा था। यह देखकर उसने अपने जूते के फीते बाँधने बंद कर दिए और पैसा जोड़ने की सोचने लगा।
बिना बहन के हाथ पीले किए वह अपने रिश्ते को कैसे स्वीकार कर लेता। इसलिए वह इन्कार करता रहा।
एक दिन मामा उसे अकेले कोने में ले जाकर समझाने लगे- ‘देख बेटे मानव- ऐसा रिश्ता फिर हाथ नहीं आएगा-दो लाख नगद देगा।’
‘पर मामा, मैं दहेज...’
‘अरे पागल, दो वर्ष हो गए तुझे जूतियां घिसते... कुछ तो अकल से काम ले-दो लाख नगद देगा... निर्मला की शादी हो जाएगी...।’
मानव ने एक बार मामा की तरफ देखा और गर्दन झुका ली।
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