नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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नियम
नवाब साहब के प्यादे ने सुबह-सुबह कुंडा खड़खड़ाया। बाई उनींदी-सी बुड़बुड़ाती हुई, ’कौन आ मरा सुबह-सुबह भी...?’
‘क्या बात है रे प्यादे?’ द्वार खोलकर बाई ने पूछा।
‘बाई, हमारे नवाब साहब ने गाड़ी भेजी है... कोई बेहतरीन माल... सिंगापुर से उनके दोस्त आए...’ प्यादा बेवजह ही हंसे जा रहा था।
‘यह समय कोई लौंडी भेजने का है, अभी-अभी तो बेचारी काम-धंधे से थककर लेटी है, कह देना शाम को भिजवा दूंगी...।’
‘बाई नवाब साहब नाराज हो जाएंगे, सोच लो...।’
‘हो जाने दो, मैं नवाब साहब की नाराजगी देखूं या अपनी लौंडियों का सुख-चैन’ कहकर बाई ने द्वार बन्द कर लिए।
प्यादे ने आकर सब समाचार नवाब साहब को दिया तो वे बहुत झुंझलाए, फिर कुछ समझाकर उसे उल्टे पांव लौटा दिया।
प्यादे ने आकर द्वार खड़खड़ाया-’ बाई, नवाब साहब ने दुगनी फीस का नजराना भेजा...’ प्यादे ने कुछ करारे नोट उसकी ओर बढ़ाए।
‘सुन रे प्यादे, अपने नवाब से कह देना, वो नवाबी के दिन लद गए।
रामकली की कोठी पर मुजरा होता है, लौंडियां नहीं बेची जाती’- दुत्कारकर बाई ने फिर फड़ाक से किवाड़ जोड़ लिए।
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