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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
11
गुलाम
अंजना पर हाथ छोड़कर उसने अपना पौरुष तो दिखा ही दिया, पर फिर भी वह आत्मग्लानि से भरा जा रहा है। उसने केवल अपने अधिकार की बात कहीं थी... फिर उसका हाथ अचानक कैसे...।
लोग उसे पढ़ा-लिखा, सभ्य नागरिक समझते हैं। वह सदैव नारी के समान अधिकारों का पोषक भी रहा है... और अंजना को चाहता भी कितना है... फिर उससे आज यह पागलपन हुआ कैसे?
हां... उसे ठीक याद है कि दादाजी की बेंत ने ही दादी को सदा के लिए कुबड़ी बना दिया था। माँ का चेहरा जलती हुई लकड़ी से पिताजी ने ही झुलसाया था...।
तो क्या वह आज भी उन्हीं संस्कारों का गुलाम है?नहीं। वह इस दासता को कभी स्वीकार नहीं कर सकता... कभी नहीं।
उठकर वह तेजी से बराबरवाले कमरे में प्रवेश कर गया, जिसमें कुछ समय पूर्व सुबकते हुए उसकी पत्नी ने प्रवेश किया था।
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