आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
धनिकों की, विद्वानों की, समर्थों की, कलाकारों की अपने देश में कमी नहीं। देश में गरीब और अशिक्षितों का बाहुल्य होते हुए भी, प्रतिभावानों का इतना बड़ा वर्ग मौजूद है, जो अपने साधनों को सर्वतोमुखी प्रगतिशीलता के लिए नियोजित कर सके, तो उतने भर से ही उत्थान, उत्कर्ष और अम्युदय का वातावरण देखते देखते बन सकता है। महापुरुषों का आंकलन दो ही आधारों पर होता है, एक तो उनने समर्थता अर्जन के लिए कठोर प्रयत्न किया है, दूसरा उन उपलब्धियों को उदारतापूर्वक प्रगतिशीलता के पक्षधर सत्प्रयोजनों के लिए नियोजित कर दिया होता है। यह दो कदम उठाने पर कोई महामानवों की पंक्ति में बैठ सकने की स्थिति में पहुँच जाता है। ऐसे लोगों का बाहुल्य जिस भी समुदाय में, क्षेत्र में होगा, वहाँ न सौहार्द की कमी रहेगी, न समर्थता की, न प्रगतिशीलता की।
उदारता, प्रामाणिकता और परमार्थ-परायणता, यह तीन ही ऐसे गुण हैं, जिनका उपार्जन-अभिवर्धन करने पर व्यक्ति न केवल अपने को सुखी समुन्नत बना सकता है, वरन् उसके क्रियाकलापों से संबद्ध समूचा परिकर ऊँचा उठता, आगे बढ़ता चला जाता है।
अगली शताब्दी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं विनिर्मित करने के लिए क्या संपदा जुटानी पड़ेगी? किस स्तर की समृद्धि जुटानी पड़ेगी? किस प्रकार की योजना और विधि व्यवस्था बनानी पड़ेगी? इसका ऊहापोह करना समय रहते उचित भी है और आवश्यक भी, किंतु इतना तो ध्यान रखना ही पड़ेगा कि लोगों की मानसिकता यदि घटिया रही, उनके दृष्टिकोण का दौर यदि आज की तरह ही चलता रहा, तो जो इच्छित एवं उपयुक्त है, उसे उपलब्ध कर सकना शताब्दियों सहस्राब्दियों में भी संभव न ही सकेगा।
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