ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
इसलिए उसने एक युक्ति सोची उसने अपना भेष बदला और उस लडकी के पास आकर कहने लगी- बेटी तुम्हारा क्या हाल है? मुझे तुम बहुत दिनों में मिली हो इसलिए शायद तुम मुझे नहीं जानती। मैं तुम्हारी मौसी हूँ। यहां पास ही में रहती हूँ। उस डायन ने उसका मन जीतने के लिए हर काम में उसकी मदद भी की।
इस प्रकार से वह डायन रोज उसके पास आती और उसे किसी तरह से बेहोश करती और उसका खून चूसकर चली जाती।
एक दिन भाईयों ने अपनी बहन से कहा- बहन तुम्हें किस बात की चिंता है। क्या तुम्हें किसी बात की कमी है। हम तुझे अच्छा खाना खिलाते हैं। अपना काम भी हम तुमसे नहीं कराते फिर क्या बात है। तुम मोटी क्यों नहीं होती। आई थी उससे भी दुबली-पतली हो गई हो तुम।
तब उनकी बहन कहने लगी कि नहीं भईया बस यूँ ही।
नहीं बहन तुम हमें बताओ क्या बात है।
तब बहन कहने लगी जब तुम यहां से चले जाते हो तो यहां पर एक औरत आती है और कहती है कि मैं तुम्हारी मौसी हूँ। और न जाने मुझे क्या हो जाता है और मैं सो जाती हूँ सो कर उठती हूँ तो वह यहां से चली जाती है।
यह सुनकर भाई कहने लगा कि वह तो डायन है। वह हमारी बहन का खून चूसने के लिए इसे बेहोश करती है। ऐसा करते हैं हम कल छुट्टी करके उस डायन का काम तमाम कर देते हैं। और बहन उसे हमारा पता नहीं चलना चाहिए कि हम यहां पर हैं।
दूसरे दिन सभी घर के अन्दर एक-एक कोने में छुप गए। सुबह जब डायन आई तो उसने उस लड़की से कहा कि क्या तुम्हारे सभी भाई बाहर गए तो बहन बोली- हां आओ मौसी आजाओ। मैं आज सिर धोऊँगी, आप मेरी चोटी करना।
डायन के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। उसने जल्दी ही उसका सिर धोया और चोटी करने के लिए उसे अन्दर ले गई। जब चोटी कर रही थी तो उसने अचानक उस लड़की को बेहोश किया। और उसके सिर को खाने के लिए झुकी। तभी सातों भाई, कुल्हाड़ी लेकर अपने-अपने कोने से निकल आये और उस डायन को मार दिया और सभी ने उससे अपना पीछा छुड़ाया। फिर सभी उस जगह को छोड़कर वापिस अपने घर वापिस आ गए।
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