लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

Like this Hindi book 0

ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है


 

जंगल में महासभा

 

आज जंगल में एक महासभा होने वाली है। जंगल के सभी जीव-जन्तु जंगल के सबसे ऊंचे टीले की तरफ भागे जा रहे हैं। इन जीवों में सभी प्रकार के जीव-जन्तु हैं। जिनमें कुछ मांसाहारी, कुछ शाकाहारी, कुछ उड़ने वाले, कुछ रेंगने वाले और कुछ फुदकने वाले। सभी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड में हैं।

यह महासभा किसी और ने नहीं बल्कि जंगल के शाकाहारी जीवों को हिंसक जीवों से बचाने के लिए खरगोश ने बुलाई थी। कुछ ही समय में वहां उस मचान के चारों तरफ सभी प्रकार के जीव एकत्रित होने लगे। कुछ ही समय में वहां पर सभी प्रकार के जीव जैसे कि मोर, कबूतर, मैना, कोयल, हंस, गीदड़, लोंभा, भेडि़ये, जंगली गधे आदि और भी अन्य प्रकार के जीव जन्तु एकत्रित हो गये।

कुछ समय बाद वहां एकत्रित सभी जीव-जन्तुओं में कानाफूसी होने लगी। अब तक मचान पर कोई भी बोलने के लिए नहीं चढ़ा था। सभी सोच रहे थे कि हमारे घर यहां बुलाने के लिए नोटिस आखिर भेजा तो किसने भेजा। अब यहां पर वह खुद तो आया भी नहीं। तभी उनमें से एक सफेद खरगोश उछल कर मंचान पर जा चढ़ा और कहने लगा- देखो भाईयो, यहां पर बुलाने के लिए मैंने ही तुम्हारे पास तुम्हारे घर पर वह लेटर भेजा था। आज आपको संबोधित करते हुए मुझे यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे जंगल में जो पंचायती राज है। उससे शायद ही कोई ऐसा आम जीव हो जो अछूता बचा है अन्यथा सभी को कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। सभी जीव हमारे राजा से दुखी हैं।

हमने जो राजा चुना था वह निरंकुश है। वह अपनी प्रजा को दुख में डालकर मजे से रह रहा है। वह अय्याशी करता है। किसी की भी मां-बहन को उठवाकर अपने घर मंगवा लेता है। आम जनता का खून चूस रहा है। कोई अपनी फरियाद भी लेकर जाये तो किसके पास। यदि कोई उसके पास जाता भी है तो उसे वह मारकर खा जाता है, या उसके जो मंत्री हैं वे उसके साथ दुर्व्यवहार करके उसे मार देते हैं और खा जाते हैं। हम उनके इस अत्याचार से बहुत दुखी हो गये हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book