ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
|
0 |
ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
काना कचरा
बहुत पुरानी बात है कि एक जाट था। उसने अपने खेत में एक बार कचरे बोए। उसके खेत में अच्छे कचरे पैदा हुए। उसने बहुत सारे कचरे बेचे। मगर एक कचरा काना था। उसको किसी ने भी नहीं खरीदा। जाट उस कचरे को अपने घर ले आया। सोचा कि उस कचरे को कांट-छांट कर जाटणी खा लेगी। इसलिए उसने वह कचरा घर लाकर जाटणी को दे दिया। जाटणी उस समय कोई काम कर रही थी। इसलिए उसने उस कचरे को खाट के नीचे डाल दिया। काम करते-करते वह उस कचरे को खाना ही भूल गई।
एक दिन जाटणी की तबीयत कुछ बिगड़ गई। इसलिए वह झाङू निकालती हुई कह रही थी- आज मैं तो बीमार हूँ। मुझसे चला जाता नहीं। जाट की रोटी खेत में कौन देकर आएगा।
यह कहते हुए उसे काफी देर गुजर गई। तब खाट के नीचे से आवाज आई- मां मैं दे आऊँगा।
जाटणी यह सुनकर हैरान थी। क्यों कि उनके यहां तो कोई औलाद ही नहीं थी तो यह मां कहने वाला कौन था। एक बार तो उसने भ्रम समझा परन्तु दोबारा आवाज आने पर उनसे पूछा- तुम कौन हो मुझे दिखाई नहीं दे रहे हो।
तब खाट के नीचे पड़े उस काने कचरे ने जवाब दिया- मां मैं काना कचरा हूँ। खाट के नीचे से बोल रहा हूँ।
तब जाटणी ने उस कचरे को खाट के नीचे से निकाला और पूछा - तुम रोटी कैसे ले जाओगे।
फिर काने कचरे ने जवाब दिया - मेरे पेट से रोटी बांध कर मुझे धक्का दे दो मैं पहुंच जाऊँगा खेत में।
जाटणी ने काने कचरे के पेट से रोटी बांधकर धक्का मारा तो वह बहुत तेज रफ्तार से खेत की तरफ रवाना हुआ।
खेत में पहुँचकर काने कचरे ने कहा- बाबू रोटी खा ले। अब तो जाट को भ्रम हो रहा था कि हमारे यहां तो कोई संतान भी नहीं है फिर यह कौन बोल रहा है?
|