ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
परन्तु फिर दूसरी आवाज आई तो वह जाट बोला- क्यों भई तुम कौन हो और किसको पुकार रहे हो?
तब काने-कचरे ने कहा कि बाबू मैं काना कचरा हूँ। और मां की तबीयत खराब होने के कारण आज मैं रोटी लेकर आया हूँ। मैं नीचे आपके पैरों में हूँ।
जाट ने जब नीचे की ओर देखा तो वास्तव में काना कचरा ही था। अब जाट बोला- अच्छा बेटे मैं जरा इन बैलों को पानी पिला लाता हूँ। तुम यहां बैठो।
तब काना कचरा कहने लगा कि- नहीं बाबू आप खाना खा लो। इन्हें पानी मैं पिला लाऊँगा।
जाट बोला- तुम कैसे पिलाकर लाओगे।
काना कचरा बोला- बाबू मेरे पेट से रस्सी बांधकर मुझे धक्का मार दो। जाट ने वैसा ही किया।
काना कचरा जब तालाब पर उन बैलों को पानी पिला रहा था कि तभी राजा के दो सैनिक आए और काने कचरे के पेट से रस्सी खोल चल दिए। काने कचरे ने देखा तो उसने गुस्सा किया। परन्तु वे सैनिक उसकी अनसुनी करते हुए वहां से चले गए। काने कचरे ने युक्ति सोची।
अब काने कचरे ने वहीं तालाब से कुछ मिट्टी लेकर एक गाड़ी बनाई तथा तालाब से मेंढक पकड़ कर उसने जोड़कर चल पड़ा।
रास्ते में उसको एक बिल्ली मिली बोली मामा-मामा, कहां जा रहे हो। तब काना कचरा कहने लगा- माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं।
यह सुनकर बिल्ली बोली- मैं भी आपके साथ चलूं। शायद कहीं काम आ सकूं।
वह बोला चलो बहन तुम भी बैठ लो।
आगे चलने पर रास्ते में एक कीड़ी मिली वह काने कचरे से बोली मामा जी आज आप दोनों कहां जा रहे हो फिर काने कचरे का वही जवाब था- माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं।
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