ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
आगे चलने पर उन्हें एक चूहा मिला। चूहा भी बिल्ली को देखकर पूछ बैठा मौसी राम-राम और तुम्हारे गले में ये क्या है तथा तुम सभी कहां जा रहे हो?
यह सुनकर बिल्ली बोली- बेटे मेरे गले यह कुदाल कंगना है और हम सभी गंगा जी स्नान करने जा रहे हैं। तुम चाहो तो तुम भी चल सकते हो।
चूहा भी उनके साथ हो लिया।
उनको चलते-चलते शाम हो गई। अब तो चारों ओर बादल घिर आए बिजली कड़कने लगी। यह देख बिल्ली बोली- चलो बेटों हम कहीं जाकर छुप जाते हैं। एक खाली ‘बिटोड़ा’था सभी उसके अन्दर घुस गए। बिल्ली उसके दरवाजे पर बैठ गई और रात का इंतजार करने लगी ताकि रात होते ही वह उन्हें खा सके। कभी वह बिल्ली चूहे की तरफ दौड़ती तो कभी मोर की तरफ और कभी मुर्गे की तरफ।
यह देखकर मोर बोला- मौसी ये आप क्या कर रही हैं।
बिल्ली बोली- नहीं बेटा कुछ नहीं मैं तो तुम्हारे साथ खिलारी कर रही हूँ।
चूहा उसकी इस चालाकी को भांप गया। वह मोर और मुर्गे से कहने लगा यदि आपसे बचा जाए तो तुम बचो, मैं तो बिल खोद कर यहां से भाग जाता हूँ। वरना यह हम सबको खा जाएगी। यदि आपसे बचा जाए तो मैं आपको एक तरकीब बताता हूँ तुम वैसा ही करना। इधर मैं बिल खोद कर उसके अन्दर घुसूंगा। बिल्ली मेरी तरफ झपटेगी तुम दोनों बाहर उड़ जाना।
उन सभी ने चूहे के कहने के अनुसार वैसा ही किया चूहा बिल के अन्दर घुस गया। बिल्ली उसे पकड़ने गई तो मुर्गा और मोर दोनों भी बाहर की तरफ उड़ गए। इस प्रकार से बिल्ली को कुछ भी हाथ नहीं लगा। बेचारी चुपचाप वहां पर बैठी रह गई।
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