जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मुझे भी इस सत्ता का ठीक-ठीक अनुभव प्राप्त हुआ। पहले तो मुझे इस विभाग के उच्चाधिकारी के पास बुलवाया गया। वे उच्चाधिकारी लंका से आये थे। 'बुलवाया गया' प्रयोग में कदाचित् अतिशयोक्ति का आभास हो सकता हैं, इसलिए थोड़ी अधिक स्पष्टता कर दूँ। मेरे नाम उनका कोई पत्र नहीं आया था। पर मुख्य-मुख्य हिन्दुस्तानियों को वहाँ बार-बार जाना ही पड़ता था। वैसे मुखियो में स्व. सेठ तैयब हाजी खानमहम्मद भी थे। उनसे साहब ने पूछा, 'गाँधी कौन है? वह क्यों आया हैं?'
तैयब सेठ ने जवाब दिया, 'वे हमारे सलाहकार हैं। उन्हें हमने बुलाया हैं।'
साहब बोले, 'तो हम सब यहाँ किस काम के लिए बैठे हैं? क्या हम आप लोगों की रक्षा के लिए नियुक्त नहीं हुए हैं? गाँधी यहाँ की हालत क्या जाने?'
तैयब सेठ ने जैसा भी उनसे बना इस चोट का जवाब देते हुए कहा, 'आप तो है ही, पर गाँधी तो हमारे ही माने जायेंगे न? वे हमारी भाषा जानते हैं। हमें समझते हैं। आप तो आखिरकार अधिकारी ठहरे।'
साहब ने हुक्म दिया, 'गाँधी को मेरे पास लाना।'
तैयब सेठ आदि के साथ मैं गया। कुर्सी तो क्योकर मिल सकती थी? हम सब खड़े रहे।
साहब ने मेरी तरफ देखकर पूछा, 'कहिये, आप यहाँ किसलिए आये हैं?'
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