जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैंने जवाब दिया, 'अपने भाइयों के बुलाने पर मैं उन्हें सलाह देने आया हूँ।'
'पर क्या आप जानते नहीं कि आपको यहाँ आने का अधिकार ही नहीं हैं? परवाना तो आपको भूल से मिल गया हैं। आप यहाँ के निवासी नहीं माने जा सकते। आपको वापस जाना होगा। आप मि. चेम्बरलेन के पास नहीं जा सकते। यहाँ के हिन्दुस्तानियो की रक्षा करने के लिए तो हमारा विभाग विशेष रुप से खोला गया हैं। अच्छा, जाइये।'
इतना कहकर साहब ने मुझे बिदा किया। मुझे जवाब देने का अवसर ही न दिया।
दूसरे साथियों को रोक लिया। उन्हें साहब ने धमकाया और सलाह दी कि वे मुझे ट्रान्सवाल से बिदा कर दे।
साथी कड़वा मुँह लेकर लौटे। यों एक नई ही पहेल अनपेक्षित रूप से हमारे सामने हल करने के लिए खड़ी हो गयी।
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