लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

कसौटी


जहाज धक्के पर लगा। यात्री उतरे। पर मेरे बारे में मि. एस्कम्ब ने कप्तान से कहलाया था : 'गाँधी को और उसके परिवार को शाम को उतारियेगा। उसके विरुद्ध गोरे बहुत उत्तेजित हो गये हैं और उनके प्राण संकट में हैं। पोर्ट सुपरिटेण्डेण्ट मि. टेटम उन्हे शामको अपने साथ ले जायेंगे।'

कप्तान में मुझे इस संदेश की खबर दी। मैंने तदनुसार चलना स्वीकर किया। लेकिन इस संदेश को मिले आधा घंटा भी न हुआ कि इतने में मि. लाटन आये और कप्तान से मिलकर बोले, 'यदि मि. गाँधी मेरे साथ चले, तो मैं उन्हें अपनी जिम्मेदारी पर ले जाना चाहता हूँ। स्टीमर के एजेण्ट के वकील के नाते मैं आपसे कहता हूँ कि मि. गाँधी के बारे में जो संदेख आपको मिला है उसके बन्धन से आप मुक्त हैं।' इस प्रकार कप्तान से बातचीत करके वे मेरे पास आये और मुझ से कुछ इस मतलब की बातें कहीँ : 'आपको जीवन का डर न हो तो मैं चाहता हूँ कि श्रीमती गाँधी और बच्चे गाड़ी में रुस्तमजी सेठ के घर जाये और आप तथा मैं आम रास्ते से पैदल चले। मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि आप अंधेरा होने पर चुपचाप शहर दाखिल हो। मेरा ख्याल हैं कि आपका बाल भी बाँका न होगा। अब तो सब कुध शान्त हैं। गोरे सब तितर-बितर हो गये हैं। पर कुछ भी क्यों न हो, मेरी राय हैं कि आपको छिपे तौर पर शहर में कभी न जाना चाहिये। '

मैं सहमत हो गया। मेरी धर्मपत्नी और बच्चे गाड़ी में बैठकर रुस्तमजी सेठ के घर सही - सलामत पहुँच गये। कप्तान की अनुमति लेकर मैं मि. लाटन के साथ उतरा। रुस्तमजी सेठ का घर वहाँ से लगभग दो मील दूर था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book