लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :349
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9822
आईएसबीएन :9781613016169

Like this Hindi book 0

भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन


महाराज श्री दशरथ द्वारा समाचार शीघ्र महारानी कैकेयी तक न पहुँचने देने में षड्यन्त्र नहीं भावुकता कार्य कर रही थी। बात यह थी कि दास-दासियों के स्थान पर स्वयं यह समाचार पहुँचाकर पहाराज श्री कैकेयी के प्रति अपने प्रगाढ़ अनुराग को प्रकट करने के साथ उन्हें आश्चर्यचकित कर देने की भावना से प्रेरित थे। कोई प्रिय अभीष्ट समाचार अप्रत्याशित रूप में सुनकर जो प्रसन्नता होती है, उसका जीवन में हम सभी कभी-न-कभी अनुभव करते हैं। वस्तुतः इस भावना का सबसे प्रबल प्रमाण है गोस्वामी जी की वह शब्दावली, जो वे कैकेयी अम्बा के महल में जाते हुए महाराज श्री के लिए प्रयुक्त करते हैं –

साँझ समय सानन्द नृपु गयउ कैकई गेह।

यह ‘सानन्द’ क्या सूचित करता है? षड्यन्त्र की भावना वाला व्यक्ति ऐसे अवसर पर सानन्द नहीं आशंका युक्त हृदय से ही प्रवेश करेगा। आगे चलकर यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है। महाराज श्री को महारानी के कोपभवन में होने का समाचार ज्ञात हुआ। व्याकुल हुए। यह मनोवैज्ञानिक बात है कि यदि महाराज के मन में कोई छल होता, तो वे तत्काल आशंकित हो उठते। सोचते – कैकेयी के समक्ष यह भेद खुल तो नहीं गया? पर नहीं यहाँ तो ठीक उल्टी बात है – रोष के रूप में इस घटना की तो क्षणिक कल्पना भी उनके लिए संभव थी। उन्होंने तो यह समझा था कि रोष जिस भी कारण से क्यों न हो इस समाचार से वह क्षण भर में विलीन हो जायेगा। इसीलिए वे कोपभवन में प्रविष्ट होते ही इस निश्चय की सूचना बड़े आवेश और भावना भरे शब्दों में देते हैं।

भामिनि भयउ तोर मन भावा। घर घर नगर अनन्द बधावा।।
रामहिं  देउँ कालि  जुबराजु। सजहिं  सुलोचनि मंगल साजू।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book