धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत प्रेममूर्ति भरतरामकिंकर जी महाराज
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भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन
अवधि का अन्तिम दिवस। कितना सुमधुर, कितना मादक, कितना आह्लादपूर्ण होगा उसका प्रतिक्षण प्रेमी के लिए। उसकी समस्त साधना, व्याकुलता इसी क्षण के लिए तो है। जीवन के अनेक दिवसों में वह दिन उसका जीवन है – प्राण है – आशा और विश्वास है – सर्वस्व है। किन्तु यदि कहीं उसके हृदय में संदेह उत्पन्न हो जाए, तो सम्भवतः उसके लिए वह दिवस सबसे संकटपूर्ण जनम-मृत्यु की पीड़ा से भी अधिक पीड़ाकारक सिद्ध होगा। क्योंकि मृत्यु और जन्म न होने पर भी उसका क्षण पर क्षण मरण और क्षण में नवजीवन होता है।
आज अवधवासियों के लिए वही अन्तिम दिवस है – अवधि का शेष दिन। प्रत्येक व्यक्ति तपस्यामय जीवन व्यतीत कर रहा है – अपने सौन्दर्य रसाम्बुनिधि अखिल हेय प्रयत्नीक गुण-निधि-राम का दर्शऩ पाने के लिए। स्वभावतः उन्हें आशा थी कि प्रभु केवल पैदल पधारेंगे। अवश्य श्रृंगवेरपुर पहुँचने पर श्री निषादराज जी हमें सूचित करेंगे। किन्तु कोई सूचना नहीं आयी। उस समय की उनकी व्याकुलता, उत्कण्ठा, अवर्णनीय है। दूत नहीं आया, फिर भी शकुन हो रहे हैं। कहीं क्षेमकारी ने शुभदर्शन देकर प्रिय आगमन की सूचना दी। तो कहीं श्यामा कल-कण्ठ से कूँजने लगी। उन्हें विश्वास हो गया कि आज अवश्य आ रहे हैं हमारे श्यामसुन्दर सजल जलद नील राघव। उनकी प्रसन्नता का क्या ठिकाना!
वास्तल्यमयी अम्बा कौशल्या तो उन्मादमय जीवन बिता रही हैं। किसी सखी ने सूचना दी कि आज ही लाडले वत्स राघव के आने का मंगलमय दिवस है, किन्तु हाँ आज कोई शुभ पत्रिका निषादराज की सुनाने वाला नहीं। करुणापूरित हृदय, क्षीण शरीर माँ के शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार हो आया। महल गगनचुम्बी भवन के धौरहरे पर चढ़ गईं। दक्षिण दिशा की ओर बड़ी ही व्याकुलता, उत्कण्ठा और व्यथा भरे नेत्रों से मार्ग निहार रही हैं। कोई पथिक दीख गया – माँ ने कहा सखि ! बुलाओ तो उस पथिक को वह कहाँ से आ रहा है। हमारे राम के पास से न ! अवश्य ही उसने अपनी माँ के सान्त्वनार्थ भेजा होगा उसे। किन्तु सभी देखती हैं कि पथिक तो दूसरी ओर जा रहा है। भयभीत होकर सोचती हैं, क्या सचमुच आज अवधि का अन्तिम दिन है?
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