लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :349
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9822
आईएसबीएन :9781613016169

Like this Hindi book 0

भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन


वास्तव में श्री भरत का यह आत्मबलिदान न केवल स्वार्थी देवताओं के लिए आश्चर्यजनक था, अपितु पुरवासियों के लिए भी था। यद्यपि वे रामानुरागी थे, परन्तु प्रेम के उस स्तर तक नहीं पहुँच पाए थे, जहाँ श्री भरत। उनको ‘अहं’ का सर्वथा विस्मरण नहीं हो पाया था। जहाँ किंचित् ‘स्व’ शेष है, वहाँ इस रहस्य को समझने में असमर्थता ही रहेगी। इसीलिए गोस्वामी जी को कहना पड़ा –

असमंजस बस अवध निवासी।

निर्णय का संकेत हो जाने पर भी नियमानुकूल अभी निर्णय नहीं हुआ था, क्योंकि भरत के इस महात्याग को देखकर प्रभु भी संकोच में पड़ जाते हैं और निर्णय स्पष्ट नहीं कर पाते। उसी समय महाराज श्री जनक के आगमन की सूचना मिलती है और उसी स्थिति में सब चल पड़ते हैं। सभा समाप्त हो जाती है।

* * *

महाराज श्री विदेह की एकान्त पर्णकुटी। श्री सुनयना जी कुछ समय पूर्व ही श्री कौशल्या से मिलकर आई हैं। वहाँ से कौशल्या जी का एक विशेष प्रस्ताव लेकर लौटी हैं। वह है – “लक्ष्मण जी घर को लौट जाएँ और राघवेन्द्र के साथ भरत वन को जाएँ।” क्यों? इसका कारण वहाँ स्पष्ट किया जा चुका है। कौशल्या अम्बा भरत के त्याग और स्नेह को देखकर मुग्ध हैं। यह तो एक प्रकार से निश्चित ही हो चुका है कि प्रभु वन को जाएँगे। ऐसी परिस्थिति में भरत आज्ञापालन की दृष्टि से अवध लौट सकते हैं, किन्तु उन्हें जितना कष्ट होगा उसकी कल्पना वात्सल्यमयी अम्बा को अच्छी नहीं लगती –

गूढ़ सनेह भरत मन माहीं।
रहें नीक मोहि लागत नाहीं।।

के द्वारा उन्होंने अपने भाव व्यक्त कर दिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book