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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816
आईएसबीएन :9781613016121

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


शरीर के द्वारा अगर भजन हो तो इससे बढ़कर जीवन की और क्या सार्थकता होगी? गीधराज ने तो जानबूझ कर ही जीवित रहना स्वीकार नहीं किया। क्योंकि भगवान् ने कह दिया था कि आप जीवित रहिए तो हम कुछ दिन आपकी सेवा करेंगे तो गीधराज का अभिप्राय यह था कि अगर आपकी सेवा के लिए ही जीना है तो इससे बढ़कर तो जीवन का कोई दुरुपयोग है ही नहीं। आपकी सेवा करने के लिए मैं यदि जीवित रहूँ तो सार्थकता हैं, सेवा लेने के लिए नहीं। इस प्रकार दो पक्ष हो गये। एक ने आग्रह करके मृत्यु माँगी और दूसरे ने आग्रह करके जीवन माँगा। यदि पूछा जाय कि दोनों में ठीक कौन है? महात्माओं ने दोनों प्रकार की बात कही हैं। कबीरदासजी ने कह दिया कि –

जा  मरने से जग डरै  सो मेरे आनन्द।
कब मरिहौं कब देखिहौं पूरन परमानन्द।।

यह दोहा भी कबीर ने कहा और एक दिन दूसरा दोहा भी उन्होंने कहा। किसी ने उनसे पूछा कि आप रो क्यों रहे हैं? बोले कि भगवान् के घर से बुलावा आया है। फिर तो आप बड़ी प्रसन्नता से भगवान् के यहाँ जायेंगे। बोले कि नहीं, नहीं-

राम बुलावा  भेजिया कबिरा  दीन्हा रोय।
जो सुख है सत्संग में सो बैकुण्ठ न होय।।

सत्संग में जो सुख है वह सुख तो भगवान् के यहाँ भी नहीं है। दोनों बातें परस्पर विरोधी लगती है, लेकिन सचमुच दोनों ठीक ही हैं। इसका अभिप्राय है कि आपको जो प्रिय लगे? जीवन भी सार्थक हो सकता है, मृत्यु भी सार्थक हो सकती है। धर्म का भी सदुपयोग हो सकता है। ज्ञान और भक्ति के द्वारा भी परम श्रेयस् प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह से भगवान् राम की जो दिव्य कथा है, भगवान् कृष्ण की जो दिव्य कथा है, इसमें सभी पक्षियों की सार्थकता है और यह सार्थकता आज भी यहाँ दिखायी दे रही है कि कौआ कथा कह रहा है और आप सब हंस सुन रहे हैं।

जासु  नाम  भव भेषज हरन घोर त्रय सूल।
सो कृपालु मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल।। 7/124 क

।।बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय।।

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