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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816
आईएसबीएन :9781613016121

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


महाराज! यह देह नित्य है कि अनित्य है? प्रभु ने कहा कि देह तो अनित्य है। फिर यह एक दिन मिटेगा कि नहीं? मिटेगा। जब मिटेगा तो ऐसी परिस्थिति में देह का इससे बढ़िया सदुपयोग और क्या होगा कि जनकनन्दिनी सीता के लिए लड़ते हुए यह शरीर उनकी सेवा में काम आ गया और आप मरते समय मेरे सम्मुख खड़े हुए हैं। गीधराज ने पूछा कि मैं मरूँगा तो कौन-सा रूप धारण करूँगा? भगवान् ने यही कहा कि तुम तो मेरा रूप यानी सारूप्य मुक्ति प्राप्त करोगे। फिर पूछा कि आप यह बताइए कि गीध का रूप बनाये रखना ठीक है कि आपका रूप प्राप्त कर लेना ठीक है। जीवित रहना तो बड़े घाटे का काम होगा। आप कुछ दे रहे हैं कि उल्टी बात कह रहे हैं? यह आप कैसा वरदान दे रहे हैं? आप कैसी उल्टी बात कह रहे हैं? भगवान् ने कहा कि अच्छा ठीक है। उन्होंने कह दिया कि –

मेरे मरिबे सम न चारि फल, होंहि तौ क्यों न कही जै।

-गीतावली, 3/15/4


और गरुड़जी ने पूछा कि महाराज! आप सुमेरु शिखर पर कितने दिनों से रहते हैं?

इहाँ बसत मोहि सुनु खग ईसा।
बीते   कलप  सात   अरु   बीसा।। 7/113/10

सत्ताइस कल्प से मैं यहाँ भगवान् की कथा सुन रहा हूँ! सत्ताइस कल्पों से मैं यहाँ रह रहा हूँ! महाराज! कल्प-कल्पान्तरों में भी आपकी मृत्यु नहीं हुई? आप शरीर को क्यों बचाये रखना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि शरीर तो बड़ा उपयोगी  है। शरीर तो रखने ही योग्य है। क्यों रखने योग्य है? उन्होंने कहा कि –

तन बिनु बेद भजन नहिं बरना। 7/95/5

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