धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया लोभ, दान व दयारामकिंकर जी महाराज
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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन
धर्म के चार पद बताये गये हैं -
सत्य, तप, दान और दया।
चारों की प्रशंसा की गयी है पर सबसे अधिक महत्ता, इस युग में दान की ही बतायी गयी है-
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
और वह पद कौन-सा है, यह बताते हुए गोस्वामीजी कहते हैं -
दान करइ कल्यान
पूछा जा सकता है कि महाराज! कैसे दान देना चाहिये? महाराज दशरथ की तरह या महाराज जनक की तरह अथवा राजा बलि की तरह?
गोस्वामीजी इसका भी उत्तर देते हुए कहते हैं - भाई! तुम यह सब मत देखो, तुम तो बस-
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान।। 7/103-ख
चाहे जिस प्रकार से भी हो सके, दान करो! डर से दो, लोभ से दो, या अन्य किसी भी कारण से दान करो, परिणाम कल्याणप्रद ही है। तो फिर ऐसी स्थिति में देने की इस क्रिया में, इस दान-यज्ञ में आनन्द लेकर, लोक-कल्याण की भावना से इसे संपन्न करना ही हमारे जीवन में आनेवाले लोभ को कम करने का सबसे अच्छा उपाय है। दान ही लोभ पर विजय प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है, यह शासन और अनुभव दोनों से ही सिद्ध होता है।
दान के इस प्रसंग की व्याख्या तो कई दिनों में भी पूरी नहीं हो सकती। पर संक्षेप में, मूल तत्त्व यह है कि दान की वृत्ति के उदय होने पर मनुष्य लोक-कल्याण के लिये सुख बाँटना सीखता है और तब उस दान के परिणाम में उसके जीवन में भी सुख, समृद्धि, यश, शान्ति और आनंद की वृद्धि होती है।
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