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धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया

लोभ, दान व दया

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9814
आईएसबीएन :9781613016206

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


लक्ष्मणजी की बात से थोड़ा आश्चर्य होना स्वाभाविक ही है क्योंकि उसकी दृष्टि से दोनों भाइयों में कोई विशेष अंतर नहीं है। यह प्रश्न किया जा सकता है कि जब भगवान् राम युवा हैं, तो लक्ष्मणजी शिशु कैसे हो गये? पर भगवान् राम उनके इस कथन का खंडन नहीं करते, क्योंकि वे ऐसा नहीं कर सकते। वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इस प्रश्न का उत्तर लक्ष्मण-परशुराम संवाद के प्रसंग में हमें प्राप्त होता है।

धनुष-यज्ञ के मंडप में परशुरामजी लक्ष्मणजी की बात सुनकर जब क्रोध से भर जाते हैं तो वे भगवान राम से कहते हैं कि तुम अपने छोटे भाई तक को समझा नहीं पाते हो? इस पर भगवान् राम कहते हैं-
प्रभु! यह नन्हा-सा बालक है -
नाथ करहु बालक पर छोहू। 1/276/1

आप इस पर 'छोह' कीजिये! इसे सुनकर परशुरामजी का क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने भगवान् राम से कहा- यह तुम्हें बालक दिखायी देता है? मुझे तो उम्र में यह तुम्हारी बराबरी का ही लगता है। बात बनाने तथा लड़ने-भिड़ने में तुमसे अधिक तेज दिखायी देता है। फिर परशुरामजी ने व्यंग्य करते हुए पूछा- अच्छा, अब यह भी बता दो कि यह कितने बरस का बालक है? अब भगवान् राम ने ऐसा वाक्य कह दिया जिसे सुनकर परशुरामजी ने सोचा- हद हो गयी! भगवान् राम ने कहा - महाराज! यह तो 'दुधमुँहा' बालक है -
नाथ करहु बालक. पर छोहू।
सूध दूधमुख करिअ न कोहू।। 1/276/1

दुधमुँहा बालक तो उसे कहा जाता है कि जिसके मुँह में अभी दाँत तक नहीं निकले हैं। छोटी उम्र का वह बालक एकमात्र अपनी माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है। परशुरामजी को प्रभु की यह बात बिलकुल अटपटी लगी पर बाद में परशुरामजी ने इसके अर्थ पर विचार किया तो उसे समझकर वे बहुत आनंदित हुए।

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