लोगों की राय
मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन
।। श्री राम: शरण मम।।
क्रोध
क्रोध मनोज लोभ मद माया।
छूटहिं सकल राम की दाया।।
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला।
जा पर होइ सो नट अनुकूला।। 3/38/3,4
आइये! क्रोध की वृत्ति पर विचार करें। क्रोध की यह वृत्ति हम सब के जीवन में दिखायी देती है। शायद ही कोई ऐसा बिरला व्यक्ति हो, जिसके जीवन में इसका उदय न होता हो! ऐसा तो हो सकता है कि कुछ लोग अपनी इस वृत्ति को बाहर प्रकट होने से रोकते हों और किसी तरह अपने आप को शान्त बनाये रखने का यत्न करते हों। पर क्रोध की वृत्ति संसार के समस्त प्राणियों की प्रकृति में दिखायी देती है।
रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में भक्त-शिरोमणि भुशुण्डिजी 'मानस-रोगों' का वर्णन करते हैं और उन्हें दूर करने की दवा भी बताते हैं। मानस-रोगों के इस विवेचन में वे आयुर्वेद शास्त्र की जो मान्य पद्धति है उसका आश्रय लेते हैं।
भुशुण्डिजी मन के रोगों को समझाने के लिये उनकी तुलना शरीर के रोगों से करते हैं। आयुर्वेद शास्त्र की मान्यता है कि मनुष्य की प्रकृति में तीन दोष बात, पित्त और कफ विद्यमान रहते हैं और प्रत्येक व्यक्ति में इन तीनों में से किसी एक की प्रधानता रहती है। इसलिए हम देखते हैं कि सब की प्रकृति समान नहीं होती। यह बात शरीर में होने वाले रोगों से भी ज्ञात होती है कि किस व्यक्ति में कौन-सा दोष प्रधान है।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai