लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> कृपा

कृपा

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9812
आईएसबीएन :9781613016183

Like this Hindi book 0

मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


गीताप्रेस ने धार्मिक जगत् की जो अद्वितीय सेवा की है, उससे आप सब परिचित हैं। उसके दो महान् संत श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार के बीच श्रीमद्भागवत के रासपंचाध्यायी को लेकर एक मतभेद हो गया। श्री गोयन्दकाजी का मत था कि श्रीमद्भागवत की जो टीका प्रकाशित की जाय उसमें रासपंचाध्यायी का प्रसंग रखा ही न जाय और न ही उसकी टीका प्रकाशित की जाय। भाईजी, श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार का आग्रह था कि इसे अवश्य रखा जाय अन्यथा श्रीमद्भागवत ग्रंथ तो निष्प्राण हो जायेगा। इस विवाद के कारण ग्रन्थ का प्रकाशन वर्षों तक अटका रहा और अंत में जब श्री गोयन्दकाजी सहमत हुए, तब रासपंचाध्यायी की टीका-सहित इस ग्रंथ का प्रकाशन हुआ। भाईजी और गोयन्दकाजी दोनों ही परम भागवत और श्रेष्ठ पुरुष थे पर दोनों की धारणाओं में कुछ भिन्नता थी।

श्री जयदयालजी को लगता था कि श्रृंगार का यह प्रसंग कुछ अश्लील-जैसा है और लोगों के मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे व्यक्ति के मन में काम-वासना की वृद्धि हो सकती है। पर भाईजी मानते थे कि यह बात तो भागवत के रचनाकार महर्षि वेदव्यासजी तथा महान् वक्ता श्री शुकदेवजी महाराज के सामने भी आयी होगी और यदि वे इसे अश्लील मानते होते, तो न तो लिखते और न ही बोलते। भाईजी ने रासपंचाध्यायी के उस श्लोक की ओर ध्यान आकृष्ट किया जिसमें व्यासजी कहते हैं इसे जो धारण करेगा, इसका जो पाठ करेगा, उसकी काम-वासना का शमन हो जायेगा –

विक्रीडितं ब्रजवधूभिरिदं च विष्णो:
श्रद्धान्वितोनुश्रृणुयादथ वर्णयेद् यः।
भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं,
हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीर:।।श्रीमद्भागवत- 10/34/40

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai