| धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
भगवान् शंकर, रावण का सिर न तो स्वीकार करते हैं और न ही बदलते हैं अपितु उसे ज्यों का त्यों वापस लौटा देते हैं। वे जानते हैं कि रावण महामूर्ख और पक्का अभिमानी है। वह बदल नहीं सकता। क्योंकि बदला तो उसे जा सकता है जो बदलने की इच्छा रखता हो पर रावण तो अपने आपको बदलने में कोई विश्वास नहीं रखता। इसलिए अंगदजी रावण के 'सिर-काटने' की वृत्ति के पीछे पतंगे की वृत्ति देखते हैं। रावण ने यह जो कह दिया था कि 'मैंने शंकरजी को सिर पर उठा लिया था' उसके लिये वे गधे का दृष्टान्त देते हुए कहते हैं – 
जरहि पतंग मोह बस भार बहहिं खर बृंद। 
रावण! तुम जानते हो ही कि गधा कितना बोझ उठाता है g: पर उस पर चंदन की लकड़ी लादी जाय या कूड़ा-कर्कट लादा जाय, वह तो बस दोनों को ढोता ही है। उसे न तो चंदन की सुगंध आती है और न ही गंदगी की दुर्गध! तुमने भी यदि विवेकपूर्वक शंकरजी को सिर पर उठाया होता तो तुम्हारे मस्तिष्क में 'विश्वास' आ गया होता और तब तुम्हारा भी कल्याण हो जाता। पर तुमने तो उठाया कहां? ढोया ही, इसलिए तुम तो गधे की ही तरह हो!'' कहा भी गया है कि- यथा खरश्चंदनभारवाही भारस्यवेत्ता न तु चंदनस्य। एक गधा चंदन लादकर चला जा रहा था। उसे देखकर एक व्यक्ति ने कहा- ''कितना सौभाग्यशाली है यह!'' निकटवर्ती दूसरे व्यक्ति ने कहा ''वह सौभाग्यशाली नहीं, पूरा गधा ही है क्योंकि वह तो बस चंदन का बोझ ही ढो रहा है, उसे न तो यह पता है कि इसमें कितनी सुगंध है, शीतलता है और न ही वह जानता है कि वह पूजा के उपयोग की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है।'' 
			
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