लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802
आईएसबीएन :9781613015391

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

146 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


''गालियाँ फिर दे लेना भई। इस वक्त क्या कहते हो? बुला लाऊँ न? जरा भले आदमी की तरह बैठ जाओ। ऐसा न हो कि उन लोगों को ऊलजलूल बकने लगो।''

प्रेम- ''नहीं, किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है। कह दो, यहाँ कोई नहीं है।''

ताहिर- ''जरा सोच लो।''

प्रेम- ''कौन! अगर तुम किसी को यहाँ लाए तो मैं इसी कुएँ में कूद पडूँगा। बड़े जलील आदमी हो। बनते हो बड़े सदाचारी, मगर छुपे हुए गुर्गे।''

बुढ़िया मजदूरनी ने मस्जिद के दरवाजे पर आकर पूछा, ''अरे मियां साहब, रहीम खाँ की मस्जिद यही है? कबसे खड़ी भूक रही हूँ। कोई बोलता ही नहीं।''

ताहिर (प्रेम से)- ''भई, इस वक्त मुझ पर रहम करो। अगर मैं जानता कि तुम अपने जामे से बाहर हो जाओगे तो भूलकर भी न लिखता। (बुढ़िया से) हाँ, यही है रहीम खाँ की मस्जिद। तुम कौन हो और कहाँ से आई हो?''

बुढ़िया- ''लखनऊ से आई हूं। बाबू प्रेमनाथ की ससुराल से। बहू जी आई हैं। बाबू साहब कहाँ हैं?''

प्रेम (ताहिर से) - ''ताहिर, तुमने मेरे साथ बड़ी दगा की। सच कहता हूँ इस वक्त मेरे हाथ में ताकत होती तो तुम्हारी गर्दन जरूर तोड़ देता। ज़ालिम, तरा तो सोचना था कि इस देवी के रू-ब-रू कैसे जाएगा? कैसे क्या होगा? ''

ताहिर- ''भाईजान, माफ़ करो। सख्त ग़लती हुई। हक तो यह है मुझे उनके आने की उम्मीद न थी।''

प्रेम- ''मैंने तो तुमसे पहले ही कह दिया था कि गोमती मेरी हालत की खबर पाकर जरूर चली आएगी। खैर, अब तो इम्तिहान ले चुके। मालूम हो गया कि हिंदू औरत कितनी वफ़ादार होती है। अब आप जाकर खुदा के लिए कह दीजिए कि प्रेमनाथ यहाँ नहीं है, और कुछ पूछें तो कह देना कि दोपहर तक यहाँ थे, मगर न जाने कहाँ चले गए? मुझसे कुछ नहीं कहा।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book