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प्रेमचन्द की कहानियाँ 29

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9790
आईएसबीएन :9781613015278

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तीसवाँ भाग


बूढ़ा- हम कितने ही ऐसे कुलीन ब्राह्मणों को जानते हैं, जो रात-दिन नशे में डूबे रहते हैं, माँस के बिना कौर नहीं उठाते; और कितने ही ऐसे हैं, जो एक अक्षर भी नहीं पढ़े हैं, आपको उनके साथ भोजन करते देखता हूँ। उनसे विवाह सम्बन्ध करने में आपको कदाचित् इन्कार न होगा। जब आप खुद अज्ञान में पड़े हुए हैं, तो हमारा उद्धार कैसे कर सकते हैं? आपका हृदय अभी तक अभिमान से भरा हुआ है। जाइए, अभी कुछ दिन और अपनी आत्मा का सुधार कीजिए। हमारा उद्धार आप के किए न होगा। हिन्दू समाज में रह कर हमारे माथे से नीचता का कंलक न मिटेगा। हम कितने ही विद्वान, कितने ही आचारवान् हो जाएँ, हमें यों ही समझते रहेंगे। हिंदुओं की आत्मा मर गई है, और उसका स्थान अहंकार ने लिया है। हम अब उस देवता की शरण में जा रहे हैं, जिनके मानने वाले हमसे गले मिलने को आज ही तैयार हैं। वे यह नहीं कहते कि तुम अपने संस्कार बदल कर आओ। हम अच्छे हैं या बुरे, वे इसी आशा में हमें अपने पास बुला रहे हैं। आप अगर ऊँचे हैं तो ऊँचे बने रहिए। हमें उड़ना नहीं आता। हम उन लोगों के साथ रहेंगे, जिनके साथ हमें उड़ना न पड़ेगा।

लीलाधर- एक ऋषि-संतान के मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है। वर्ण-भेद तो ऋषियों ही का किया हुआ है। उसे तुम कैसे मिटा सकते हो?

बूढ़ा- ऋषियों को मत बदनाम कीजिए। यह सब पाखंड आप लोगों का रचा हुआ है। आप कहते हैं, तुम मदिरा पीते हो; लेकिन आप   मदिरा पीनेवालों की जूतियाँ चाटते हैं। आप हमसे माँस खाने के कारण घिनाते हैं, लेकिन बलवान गौ-माँस खानेवालों के सामने नाक रगड़ते हैं। इसीलिए न कि वे आपसे बलवान हैं? हम भी आज राजा हो जाएँ, तो आप हमारे सामने हाथ बाँधे खड़े होंगे। आपके धर्म में वही ऊँचा है, जो बलवान है, वही नीच है, जो निर्बल है। यही आपका धर्म है?

यह कहकर बूढ़ा वहाँ से चला गया, और उसके साथ ही लोग भी उठ खड़े हुए। केवल चौबेजी और उनके दलवाले मंच पर रह गये, मानो गान समाप्त हो जाने के बाद उसकी प्रतिध्वनि वायु में गूँज रही हो।

तबलीगवालों ने जब से चौबेजी के आने की खबर सुनी थी, इस फिक्र में थे कि किसी उपाय से इन सबको यहाँ से दूर करना चाहिए। चौबेजी का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। जानते थे, यह यहाँ जम गया, तो हमारी सारी की-करायी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी। इसके कदम यहाँ जमने न पाएँ। मुल्लाओं ने उपाय सोचना शुरू किया। बहुत वाद-विवाद, उज्जत और दलील के बाद निश्चय हुआ कि इस काफिर को कत्ल कर दिया जाए। ऐसा सबाब लूटने के लिए आदमियों की क्या कमी? उसके लिए तो जन्नत का दरवाजा खुल जाएगा, हूरें उसकी बलाएँ लेंगी, फरिश्ते कदमों की खाक का सुरमा बनाएँगे, रसूल उसके सर पर बरकत का हाथ रखेंगे। खुदावंत करीम उसे सीने से लगाएँगे और कहेंगे- तू मेरा प्यारा दोस्त है। दो हट्टे-कट्टे जवानों ने तुरन्त बीड़ा उठा लिया।

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