कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
मैंने आज बड़ी उमंग और उत्साह से गाना शुरू किया। मैंने आज देखा कि उसका असर तूरया पर कैसा पड़ता है। उसका शरीर काँपने लगा, आँखें डबडबा आयी, गाल पीले पड़ गये और वह काँपती हुई बैठ गयी। उसकी दशा देखकर मैंने दूने उत्साह से गाना शुरू किया और अन्त में कहा- तूरया, अगर मैं मारा जाऊँ, तो मेरे बच्चों को मरने की खबर देना।
मेरी बात का पूरा असर पड़ा। तूरया ने भर्राये हुए स्वर में कहा कैदी, तुम मरोगे नहीं। मैं तुम्हारे बच्चों के लिए तुम्हें छोड़ दूँगी।
मैंने निराश होकर कहा- तूरया, तुम्हारे छोड़ देने से भी मैं न बच सकूँगा इस जंगल में मैं भटक-भटक कर मर जाऊँगा, और फिर तो तुम पर भी मुसीबत आ सकती है। अपनी जान के लिए तुमको मुसीबत में न डालूँगा।
तूरया ने कहा- मेरे लिए तुम चिन्ता न करो। मेरे ऊपर कोई शक न करेगा। मैं सरदार की लड़की हूँ, जो कहूँगी, वही, सब मान लेंगे, लेकिन क्या तुम जाकर रुपया भेज दोगे?
मैंने प्रसन्न होकर कहा- हाँ तूरया, मैं रुपया भेज दूँगा।
तूरया ने जाते हुए कहा- तो मैं भी तुम्हें छुटकारा दिला दूँगी।
इस घटना के बाद तूरया सदैव मेरे बच्चों के सम्बन्ध में बातें करती। असद खाँ, सचमुच इन अफ्रीदियों को बच्चे बहुत प्यारे होते हैं। विधाता ने उन्हें बर्बर हिंसक पशु बनाया है, तो मनुष्योचित प्रकृति से वंचित भी नहीं रक्खा है। आखिर जुमेरात आई और अभी तक सरदार वापस न आया। न कोई उस गिरोह का आदमी ही वापस आया। उस दिन सन्ध्या समय तूरया ने आकर कहा- कैदी, अब मैं नहीं जा सकती, क्योंकि मेरा पिता अभी तक नहीं आया। यदि कल भी न आया, तो मैं तुम्हें रात को छोड़ दूँगी। तुम अपने बच्चों के पास जाना, लेकिन देखो, रुपया भेजना न भूलना मैं तुम पर विश्वास करती हूँ।
मैंने उस दिन बड़े उत्साह से गाना गाया। आधी रात तक तूरया सुनती रही, फिर सोने चली गयी। मैं भी ईश्वर से मनाता रहा कि कल तक सरदार और न आये। काठ में बँधे-बँधे मेरा पैर बिलकुल निकम्मा हो गया था। तमाम शरीर दुख रहा था। इससे तो मैं काल कोठरी में ही अच्छा था, क्योंकि वहाँ तो हाथ-पैर हिला-डुला सकता था।
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