कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
दूसरे दिन भी गिरोह वापस न आया। उस दिन तूरया बहुत चिन्तित थी। शाम को आकर तूरया ने मेरे पैर खोलकर कहा- कैदी, अब तुम जाओ। चलो, मैं तुम्हें थोड़ी दूर पहुँचा दूँ।
थोड़ी देर तक मैं अवश्य लेटा रहा। धीरे-धीरे मेरे पैर ठीक हुए और ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ मैं तूरया के साथ चल दिया।
तूरया को प्रसन्न करने के लिए मैं रास्ते भर गीत गाता आया। तूरया बार-बार सुनती और बार-बार रोती। आधी रात के करीब मैं तालाब के पास पहुँचा। वहाँ पहुँचकर तूरया ने कहा- सीधे चले जाओ तुम पेशावर पहुँच जाओगे। देखो होशियारी से जाना, नहीं तो कोई तुम्हें अपनी गोली का शिकार बना डालेगा, यह लो, तुम्हारे कपड़े हैं, लेकिन रुपया जरूर भेज देना। तुम्हारी जमानत मैं लूँगी। अगर रुपया न आया, तो मेरे भी प्राण जायँगे और तुम्हारे भी और रुपया आ जायगा, तो कोई अफ्रीदी तुम पर हाथ न उठायेगा, चाहे एक बार तुम किसी को मार भी डालो। जाओ, ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें तुमको अपने बच्चों से मिलावें।
तूरया फिर ठहरी नहीं। गुनगुनाती हुई लौट पड़ी। रात दो पहर बीत चुकी थी। चारों ओर भयानक निस्तब्धता छाई थी, केवल वायु साँय-साँय करती हुई बह रही थी। आकाश के बीचो-बीच चन्द्रमा अपनी सोलहों कला से चमक रहा था। तालाब के तट पर रुकना सुरक्षित न था। मैं धीरे-धीरे दक्षिण की ओर बढ़ा। बार-बार चारों ओर देखता जाता था। ईश्वर की कृपा से प्रातःकाल होते-होते मैं पेशावर की सरहद पर पहुँच गया।
सरहद पर सिपाहियों का पहरा था। मुझे देखते ही तमाम फौज भर में हलचल मच गयी। सभी लोग मुझे मरा समझे हुए थे। जीता-जागता लौटा हुआ देखकर सभी प्रसन्न हो गये।
कर्नल हैमिलटन साहब भी समाचार पाकर उसी समय मिलने आये और सब हाल पूछकर कहा- मेजर साहब, मैं आपको मरा हुआ समझता था। मेरे पास तुम्हारे दो पत्र आये थे, लेकिन मुझे स्वप्न में भी विश्वास न हुआ था कि वे तुम्हारे लिखे हुए हैं। मैं तो उन्हें जाली समझता था। ईश्वर को धन्यवाद है कि तुम जीते बचकर आ गये।
मैंने कर्नल साहब को धन्यवाद दिया और मन-ही-मन कहा- काले आदमी का लिखा हुआ पत्र जाली था, और कहीं अगर गोरा आदमी लिखता, तो दो कौन कहे, चार हजार रुपया पहुँच जाता। कितने ही गाँव जला दिये जाते और न जाने क्या-क्या होता।
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