कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
मैंने दूसरा पत्र लिखकर दे दिया।
सरदार के जाने का बाद तूरया आयी। यह वही रमणी थी, जो अभी गयी है। यही उस सरदार की लड़की थी। यही मेरा गाना सुनती थी और इसी ने सिफारिश करके मेरी जान बचायी थी।
तूरया आकर मुझे देखने लगी। मैं भी उसकी ओर देखने लगा।
तूरया ने कहा- कैदी, घर में तुम्हारे कौन-कौन है?
मैंने बड़े ही कातर स्वर में कहा- दो छोटे-छोटे बालक, और कोई नहीं। मुझे मालूम था कि अफ्रीदी बच्चों को बहुत प्यार करते हैं।
तूरया ने पूछा- उसकी माँ नहीं है?
मैंने केवल दया के उपजाने के लिए कहा- नहीं, उनकी माँ मर गयी है। वे अकेले हैं। मालूम नहीं, जीते हैं या मर गये, क्योंकि मेरे सिवाय उनकी देख-रेख करने वाला और कोई न था।
कहते-कहते मेरी आँखों में आँसू भर आये। तूरया की भी आँखें सूखी न रहीं। तूरया ने अपना आवेग सँभालते हुए कहा- तो तुम्हारे कोई नहीं है? बच्चे अकेले हैं? बहुत रोते होंगे!
मैंने मन-ही-मन प्रसन्न होते हुए कहा- हाँ, रोते-जरूर होंगे। कौन जानता है शायद मर भी गये हों।
तूरया ने बात काटकर कहा- नहीं, अभी मरे न होंगे। अच्छा तुम रहते कहाँ हो? मैं जाकर पता लगा आऊँगी।
मैंने अपने घर का पता बता दिया। उसने कहा- उस जगह तो मैं कई बार हो आयी हूँ। बाजार से सौदा लेने मैं अक्सर जाती हूँ, अब जब जाऊँगी, तो तुम्हारे बच्चे की खबर ले आऊँगी।
मैंने सशंकित हृदय से पूछा- कब जाओगी?
उसने कुछ सोचकर कहा- उस जुमेरात को जाऊँगी। अच्छा, तुम वही गीत गाओ।
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