कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
हरनाथ ने कहा- किसी अच्छे ओझा को बुलाना चाहिए, जो इसे मार भगाये।
चौधरी- क्या रात को तुम्हें भी दिखाई दी थी?
हरनाथ- हाँ, मैं तुम्हारे पास एक मामले में सलाह करने आया था। ज्यों ही अंदर कदम रखा, वह चुड़ैल ताक के पास खड़ी दिखायी दी, मैं बदहवास हो कर भागा।
चौधरी- अच्छा, फिर तो जाओ।
स्त्री- कौन, अब तो मैं न जाने दूँ, चाहे कोई लाख रुपये ही क्यों न दे।
हरनाथ- मैं आप न जाऊँगा।
चौधरी- मगर मुझे कुछ दिखायी नहीं देता। यह बात क्या है?
हरनाथ- क्या जाने, आपसे डरती होगी। आज किसी ओझा को बुलाना चाहिए।
चौधरी- कुछ समझ में नहीं आता, क्या माजरा है। क्या हुआ बैजू पांडे की डिग्री का?
हरनाथ इन दिनों चौधरी से इतना जलता था कि अपनी दूकान के विषय की कोई बात उनसे न कहता था। आँगन की तरफ ताकता हुआ मानो हवा से बोला- जो होना होगा, वह होगा, मेरी जान के सिवा और कोई क्या ले लेगा? जो खा गया हूँ, वह तो उगल नहीं सकता।
चौधरी- कहीं उसने डिग्री जारी कर दी तो?
हरनाथ- तो क्या? दूकान में चार-पाँच सौ का माल है, वह नीलाम हो जायगा।
चौधरी- कारोबार तो सब चौपट हो जायगा?
हरनाथ- अब कारोबार के नाम को कहाँ तक रोऊँ। अगर पहले से मालूम होता कि कुआँ बनवाने की इतनी जल्दी है, तो यह काम छेड़ता ही क्यों? रोटी-दाल तो पहले भी मिल जाती थी। बहुत होगा, तो-चार महीने हवालात में रहना पड़ेगा। इसके सिवा और क्या हो सकता है?
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