कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
माता ने कहा- जो तुम्हें हवालात में ले जाए, उसका मुँह झुलस दूँ ! हमारे जीते-जी तुम हवालात में जाओगे!
हरनाथ ने दार्शनिक बन कर कहा- माँ-बाप जन्म के साथी होते हैं, किसी के कर्म के साथी नहीं होते।
चौधरी को पुत्र से प्रगाढ़ प्रेम था। उन्हें शंका हो गयी थी कि हरनाथ रुपये हजम करने के लिए टाल-मटोल कर रहा है। इसलिए उन्होंने आग्रह करके रुपये वसूल कर लिये थे। अब उन्हें अनुभव हुआ कि हरनाथ के प्राण सचमुच संकट में हैं। सोचा, अगर लड़के को हवालात हो गयी, या दूकान पर कुर्की आ गयी; तो कुल-मर्यादा धूल में मिल जायगी। क्या हरज है, अगर गोमती के रुपये दे दूँ। आखिर दूकान चलती ही है, कभी न कभी तो रुपये हाथ में आ ही जाएँगे।
एकाएक किसी ने बाहर से पुकारा, 'हरनाथसिंह !'
हरनाथ के मुख पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। चौधरी ने पूछा- कौन है?
'कुर्क अमीन।'
'क्या दूकान कुर्क कराने आया है?'
'हाँ, मालूम तो होता है।'
'कितने रुपयों की डिग्री है?'
'1500 रु. की।'
'कुर्क-अमीन कुछ लेने-देने से न टलेगा?'
'टल तो जाता पर महाजन भी तो उसके साथ होगा। उसे जो कुछ लेना है, उधर से ले चुका होगा।'
'न हो, 1500 रु. गोमती के रुपयों में से दे दो।'
'उसके रुपये कौन छुएगा। न-जाने घर पर क्या आफत आये।'
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